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The translation preserving the Jain terms is as follows: The discussion on the division and disruption of the anubhaga (intensity) of the utkrsta (superior) and anutkrista (inferior) Prakrtis (karmic states). 108. Similarly, for the remaining karmas, except for samyaktva (right faith) and samyagmithyatva (mixed faith), the divisions should be known. 109. For the anubhaga of samyaktva and samyagmithyatva, there may be some jivas (living beings) who are vibhaktiya (divided) and some who are avibhaktiya (undivided). 110. Thus, there are three bhangas (divisions) in this case. 111. For the anubhaga of anukrsta (inferior), all jivas may be avibhaktiya (undivided). 112. Thus, there are three bhangas in this case as well.
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________________ १६७ गा० २२ ] उक्करप्रकृतिअनुभाग विभक्तिभंगविचय-निरूपण विहत्तिया च अविहत्तिया च । १०८. एवं सेसाणं कम्माणं सम्मत्त सम्मामिच्छत्तवज्जाणं । १०९. सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणमुकस्स अणुभागस्स सिया सच्चे जीवा विहत्तिया । ११०. एवं तिष्णि भंगा । १११. अणुक्कस्सअणुभागस्स सिया सव्वे अविहत्तिया । ११२. एवं तिष्णि भंगा । • साथ प्रवृत्ति देखी जाती है । कदाचित अनेक जीव मिथ्यात्वकर्मकी अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति - वाले होते है और कोई एक जीव अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाला नही होता है । क्योंकि, कभी किसी कालमे मिध्यात्वकी अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति करनेवाले बहुत से जीवो के साथ कोई एक उत्कृष्ट अनुभागविभक्ति करनेवाला भी जीव पाया जाता है । कदाचित अनेक जीव मिथ्यात्व की अनुत्कृष्ट अनुभागकी विभक्तिवाले होते है और अनेक अनुत्कृष्टविभक्तिवाले नही होते है । क्योकि, मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले भी जीवोका पाया जाना संभव है । इस प्रकार मिध्यात्वकर्मसम्बन्धी अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिके ये तीन भंग होते है ॥१०५-१०७॥ चूर्णिमू० - इसी प्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन दो प्रकृतियोको छोड़कर शेष चारित्रमोहसम्बन्धी पच्चीस कर्म - प्रकृतियोके अनुभागविभक्तिसम्बन्धी भंग जानना चाहिए । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व, इन दोनो प्रकृतियोके उत्कृष्ट अनुभागके कदाचित् सर्व जीव विभक्तिवाले होते हैं, इस प्रकार तीन भंग जानना चाहिए । अनुत्कृष्ट अनुभागके कदाचित् सर्व जीव अविभक्तिवाले होते है, इस प्रकार तीन भंग जानना चाहिए ॥। १०८-११२॥ विशेषार्थ- - सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिके तीन-तीन भंगोका स्पष्टीकरण इस प्रकार है- इन दोनो प्रकृतियो के कदाचित् सर्वजीव उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवाले होते है । कदाचित् अनेक विभक्ति करनेवाले होते है और एक जीव विभक्ति करनेवाला नही होता है। कदाचित् अनेक विभक्ति करनेवाले और अनेक जीव विभक्ति नही करनेवाले होते है । इस प्रकार तीन भंग होते है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व, इन दोनो प्रकृतियो के अनुत्कृष्ट अनुभाग के कदाचित् सर्वजीव विभक्ति करनेवाले नही होते है, क्योकि, दर्शनमोहकी क्षपणाको छोड़कर अन्यत्र उक्त दोनो प्रकृतियोका अनुत्कृष्ट अनुभाग पाया नहीं जाता, तथा दर्शनमोहके क्षपण करनेवाले जीव भी सर्व काल नही पाये जाते हैं, क्योकि, उनका उत्कृष्ट अन्तरकाल छह मास बतलाया गया है । इन्हीं दोनो प्रकृतियोकी अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति करनेवाले कदाचित् अनेक जीव नहीं होते है और कोई एक जीव होता है । कदाचित् अनेक जीव अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति करनेवाले पाये जाते हैं और अनेक जीव अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति करनेवाले नही पाये जाते है । इस प्रकार सम्यक्त्व और सम्यमिथ्यात्व इन दोनो प्रकृतियोके नानाजीवो की अपेक्षा उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिके तीन तीन भंग होते हैं 1
SR No.010396
Book TitleKasaya Pahuda Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1955
Total Pages1043
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size71 MB
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