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Gatha 22] Exposition of the Conjunction of Existence-Divisions 111 137. The minimum interval of the lowest existence-division is one samaya. 138. The maximum is innumerable kalpas. 139. For the hell-going, the minimum interval of the existence-division of right-belief and the four anantānubandhi passions is one samaya. 140. The maximum is twenty-four hours. 141. The rest are as stated in the exposition. 142. The conjunction. The division of the maximum of wrong-belief may be associated with right-belief and right-wrong-belief, or may be dissociated from them. 143. If it is associated, then it is necessarily non-maximum. 144. The non-maximum is from the maximum down to one existence-division of one antarmuhūrta.
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________________ गा० २२ ] स्थितिविभक्ति-सन्निकर्प-निरूपण १११ जहण्णद्विदिअंतरं जहण्णेण एगसमओ । १३७. उकस्सेण संखेजाणि वस्त्राणि । १३८. णिरयगईए सम्मामिच्छत्त-अणताणुवंधीण जहण्णट्ठिदिअंतरं जहणेण एगसमओ । १३९. उक्कस्सं चउवीसमहोरत्ते सादिरेगे । १४०. सेसाणि जहा उदीरणा तहा दव्वाणि । १४१. सण्णियासो । १४२. मिच्छत्तस्स उक्कस्सियाए द्विदीए जो विहत्तिओ सो सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणं सिया कम्मंसियो सिया अकम्मसियो । १४३. जदि कम्मंसियो णियमा अणुकस्सा | १४४. उकस्सादो अणुकस्सा अंतोमुहूतूणमादिं काढूण जाव एगा द्विदिति । कारण यह है कि अप्रशस्तवेदके उदयसे क्षपक श्रेणी पर चढ़नेवाले जीवोका बहुलतासे पाया जाना संभव नहीं है ॥१३०-१३७॥ चूर्णिसू० - नरकगतिमे सम्यग्मिथ्यात्व और चारो अनन्तानुबन्धी कपायोकी जघन्य स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तर काल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ अधिक चौवीस दिन-रात्रि है । शेष प्रकृतियोका अन्तरकाल जैसा उदीरणामे कहा है, उस प्रकार से जानना चाहिए ।। १३८-१४० ॥ चूर्णिसू ० - अब स्थितिविभक्तिसम्बन्धी सन्निकर्ष कहते है । जो जीव उत्कृष्ट स्थितिकी विभक्तिवाला है वह सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व, इन दोनो कदाचित् सत्त्ववाला होता है और कदाचित् असत्त्ववाला होता है ।। १४१-१४२॥ मिथ्यात्व की प्रकृतियो का विशेषार्थ - इसका कारण यह है कि यदि अनादिमिध्यादृष्टि अथवा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना किया हुआ सादिमिध्यादृष्टि जीव मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थितिको बाँधता है, तो वह सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व, इन दोनो प्रकृतियो की सत्ता से रहित होता है । किन्तु जो सादिमिथ्यादृष्टि है और जिसने इन दोनो प्रकृतियोके सत्त्वकी उद्वेलना नही की है, वह यदि मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बाँधता है, तो वह सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन दोनो प्रकृतियोकी सत्तावाला होता है । चूर्णिस०- यदि उपर्युक्त जीव उक्त दोनो प्रकृतियोकी सत्तावाला होता है, तो नियमसे अनुत्कृष्ट स्थितिकी सत्तावाला होता है ॥ १४३ ॥ विशेषार्थ - इसका कारण यह है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति वेदकसम्यग्दृष्टि जीवके वेदकसम्यक्त्व उत्पन्न करनेके प्रथम समयमे ही पाई जाती है, इससे उसका मिथ्यादृष्टि जीवके पाया जाना असंभव है । अतएव मिथ्यात्वप्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थिति के वन्धकालमे सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी स्थितिसत्ता नियमसे अनुत्कृष्ट ही होती है । चूर्णिसू० - वह अनुत्कृष्ट स्थिति सत्त्व उत्कृष्ट स्थितिमेसे एक अन्तर्मुहूर्त कमको आदि करके एक स्थिति तकके प्रमाणवाला होता है ॥ १४४ ॥
SR No.010396
Book TitleKasaya Pahuda Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1955
Total Pages1043
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size71 MB
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