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110 Kasaya Pahuda Sutta [123. The difference between the states of different jivas. 124. What is the maximum duration of the difference in the highest state of all the prakritis? 125. The minimum duration is one samaya. 126. The maximum duration is the innumerable fraction of an angula. 127. This is the minimum difference. 128. The minimum difference in the states of mithyatva, samyaktva, and the eight kasayas and six nokayas is one samaya. 129. The maximum difference is six months. 130. The minimum difference in the states of samyag-mithyatva and the four anantanubandhi kasayas is one samaya. 131. The maximum difference is a little more than twenty-four hours. 132. The minimum difference in the states of the three samjvalana kasayas and the purusaveda is one samaya. 133. The maximum difference is a little more than a year. 134. The minimum difference in the state of the lobha-samjvalana kasaya is one samaya. 135. The maximum difference is six months. 136. The difference in the states of the striveda and napumsaka-veda.]
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________________ ११० कसाय पाहुड सुत्त [३ स्थितिविभक्ति १२३. णाणाजीवेहि अंतरं । १२४. सव्वपयडीणमुक्कस्सद्विदिविहत्तियाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? १२५. जहष्णेण एगसमओ। १२६. उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेजदिभागो। १२७. एत्तो जहण्णयंतरं । १२८. मिच्छत्त-सम्मत्त-अदुकसायछण्णोकसायाणं जहणहिदिविहत्तिअंतरं जहणेण एगसमओ। १२९. उकस्सेण छम्मासा १३०. सम्मामिच्छत्त-अणंताणुबंधीणं जहण्णहिदिविहत्तिअंतरं जहण्णेण एगसमओ । १३१. उक्कस्सेण चउवीसमहोरत्त सादिरेगे । १३२. तिण्हं संजलण-पुरिसवेदाणं जहण्णेण एगसमओ । १३३. उक्कस्सेण वस्सं सादिरेयं । १३४. लोभसंजलणस्स जहष्णद्विदिअंतरं जहण्णेण एगसमओ । १३५. उक्कस्सेण छम्मासा । १३६. इत्थि-णqसयवेदाणं चूर्णिसू०-अव नानाजीवोकी अपेक्षा स्थितिविभक्तिका अन्तर कहते है। सर्वमोहप्रकृतियोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिवालोका अन्तरकाल कितना है ? जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल आवलीके असंख्यातवे भाग प्रमाण है ॥१२३-१२६॥ विशेषार्थ-उत्कृष्ट स्थितिसत्त्वसे विद्यमान सर्वजीवोके अनुत्कृष्ट स्थितिसत्त्वके साथ एक समय रहकर तृतीय समयमे उत्कृष्ट स्थितिवन्धसे परिणत होनेपर उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिका एक समय-प्रमाण अन्तर पाया जाता है। मोहकर्मकी सभी प्रकृतियोकी उत्कृष्ट स्थितिसत्त्वविभक्तिका उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवे भाग काल-प्रमाण है। इसका कारण यह है कि जब एक स्थितिका उत्कृष्ट स्थितिवन्धकाल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण पाया जाता है, तो संख्यात कोडाकोडी सागरोपम-प्रमित स्थितियांका कितना काल होगा, इस प्रकार त्रैराशिक करनेपर अंगुलके असंख्यातवे भाग-प्रमाण अन्तरकाल उपलब्ध होता है । चूर्णिमू०-अव जघन्य स्थितिसत्त्वविभक्तिका अन्तर कहते है। मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, अप्रत्याख्यानावरणादि आठ कषाय और हास्यादि छह नोकपाय, इन प्रकृतियोकी जघन्य स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तरकाल एक समय है। क्योकि, विवक्षित समयमे जघन्य स्थितिको करके तदनन्तर द्वितीय समयमे अन्तरको प्राप्त होकर पुनः तृतीय समयमे अन्य जीवोके जघन्य स्थितिको प्राप्त होनेपर एक समय-प्रमाण अन्तर पाया जाता है। उक्त प्रकृतियोका उत्कृष्ट अन्तर छह मास है, क्योकि, आपक जीवोका इससे अधिक अन्तर पाया नहीं जाता है ॥१२७-१२९॥ चूर्णिसू०-सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुवन्धी-कपायचतुष्क, इन प्रकृतियोकी जघन्य स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ अधिक चौबीस दिन-रात्रि है । क्रोध, मान और माया ये तीन संज्वलनकपाय तथा पुरुपवेद, इन प्रकृतियोकी जघन्य स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ अधिक वर्प-प्रमाण है । लोभसंज्वलनकपायकी जघन्य स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह मास है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेद, इन दोनोकी जघन्य स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तरकाल एक समय, तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल संख्यात वर्ष है। इसका
SR No.010396
Book TitleKasaya Pahuda Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1955
Total Pages1043
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size71 MB
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