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________________ ( ३० ) ; लौकिक अमरत्व पद तभी उन्होंनेभटकता जिसके लिए हा ! नर-लोक है जीवन भर चाहता पुत्र मांग-सा ही एकाकी ; निज समस्त पुण्य पुरातन तथा चिरसंत्रित संपत्ति पैतृक के बदले । मूद लिए मुग्ध नेत्र दोनों अपने । कर बद्ध कर दिए ईश-भक्ति-भावना ने उनके | किया प्रणाम मन-ही-मन में; कृतज्ञता से प्रति नतमस्तक हो गए । " " -मा कुछ क्षण बाद ही खुले फिर नेत्र दोनों उनके भक्ति से, वात्सल्य से झलकंने-स लगा, उत्सुक मानो, किंचित् नीर उनमें । स्नेह को सरल दृष्टि श्रहा ! नाच रही थी क्षीण रस-पर्त र मुदित सौ उनकी · खेलती थी दीप ज्योति भर अति मोद में, जल- चादर पर, पूर्व समय में जैसे 1 केलि काड़ा करने लगी सरल बालिकाकल्पना तब रुचिर प्रांगन में मस्तिष्क के । नेत्र-नीर - चादर पार देखा यों उसनेशोभित है विजय वैजयती श्रहा ! गले विवि की शुभ्र सी प्रिय पुत्र के ।
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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