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________________ ( २५ ) करना उचित होगा इस समय मेरे लिए क्या ? [ग्वीझकर पूछा पुत्र ने पिता से ; स्वर में भी उमके किचित् कठोरता थी। मुस्कराए मन ही मन श्राचार्य ; नेत्रों में उनके झलक श्री वात्मल्य की, गंभीरता यो स्वाभाविक स्वर नं । बोले समझाने को-] निज कर्त्तव्य-पालन बेटा. सहज नहीं ; समझा पर्याय इसे असिधार-व्रत का । जूझना पड़ेगा काल से. नित्य ही रहेगी जान हथेली पर ; होंगे सफल फिर भी असफल ही अथवा-कुछ निश्चित नहीं। । कच देख रहा था और पिता को अपने निर्भीकता से बड़ी, पर झुंझलाहट थो . चितवन में उसकी ; किंचित् व्यग्रता भी। तभी प्राचार्य ने पुनः कहा अपने प्रिय पुत्र से सुरगुरु प्रण करो कच ! वीरवर अतएव, हो सकूँगा निश्चित मैं तभी, संतुष्ट भी । कहो
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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