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________________ -[२६]अनुभाग ( मियाद, शक्ति ) घट जाने को 'श्रयकपण' और बढ़ जाने को 'उत्कर्पण' कहते हैं। फिर कर्मों से छुटकारा कैसे हो "जब कि पुराने कर्म अपना फल देकर दूर होते जावे और नवीन कर्म आत्मा के साथ लगते जावे तब इस कर्मबन्धन से छुटकारा कभी नहीं हो सकता। इस कारण जीव जैसे अनादि काल से संसार में घूमता चला आ रहा है वैसे ही अनन्त काल तक घूमता रहेगा। फिर जीव को मुक्ति किस तरह प्राप्त होगी ?" यह एक प्रश्न सामने आखड़ा होता है इसका उत्तर यह है कि जिस तरह ऋण के बोझ से दबा हुआ एक मनुष्य अपना पिछला कर्जा अधिक भुगताना शुरू करे और आगे को कर्जा लेना चन्द कर दे अथवा थोड़ा लेने लगे तो वह कुछ दिन बाद कर्जे से बिलकुल छूट जायगा। इसी प्रकार संसारी जीव धन दौलत, पुत्र, मित्र, स्त्री, माता, भ्राता आदि के मोह में फंसा हुआ किसी को अपना समझ कर उमसे प्रेम करता है, किसी को अपना वैरी समझ कर उससे वैर करता है, किसी से झगड़ता है, किसी को मारता है, किसी के साथ विश्वासघास करता है, किसी पर क्रोध करता है, किसी की खुशामद करता है इत्यादि, । अनेक तरह के ऐसे काम करता है जो कि नये २ कर्मबंधन के कारण होते हैं किन्तु जब इस जीव को यह हढ़ विश्वास हो जावे कि- "सांसारिक पदार्थ तथा पुत्र, मित्र आदि परिवार न मेरा है और न मैं इनका हूं। यह सब स्वार्थ साधन का
SR No.010392
Book TitleKarma Siddhant Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherAjit Kumar
Publication Year
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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