SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - [ २८ ] पीछे विषनाशक दवा खा ली तो वह विष उस आदमी पर अपना असर नहीं कर पावेगा या बहुत थोड़ा असर करेगा । इसी तरह किसी मनुष्य ने क्रोध में आकर किसी को मारा जिससे उसने असातावेदनीय ( दुखदायक ) कर्म बांधा किन्तु उसके बाद उसे अपने किये पाप पर पश्चात्ताप हुआ उसने फिर परोपकार, दया, क्षमा, शान्ति आदि से ऐसा जबर्दस्त साता वेदनीय (सुखदायक) कर्म बान्धा कि जिसने पहले के दुखदायक कर्म को भी सुखदायक या कम दुखदायक बना दिया | इसी तरह बांधे हुए कर्मों के विपरीत ( खिलाफ ) काम करने से कर्मों की तासीर ( प्रकृति ) पलट जाती है, तथा उनकी मियाद (स्थिति) तथा शक्ति घट जाती है, और बांबे हुए कर्मों के अनुकूल ( मुआफिक ) कार्य करते रहने से वांधे हुए कर्मों में शक्ति अधिक हो जाती है, उनकी स्थिति ( मियाद ) भी अधिक लम्बी हो जाती है । कोई कोई ऐसे वज्र कर्म भी बान्ध लिये जाते हैं जिनके बांधते समय घोर पापरूप या पुण्य रूप मानसिक विचार, वचन या शारीरिक क्रिया होती है कि उन कर्मों में ऐसी अचल शक्ति पड़ जाती है जिसको जराभी हिलाया चलाया उलटा पलटा नहीं जा सकता । अतः वे अपना नियत ( मुकर्रिर ) फन्त देकर ही जीव. का पीछा छोड़ते हैं । ऐसे कर्म 'निकांचित' कहलाते हैं । कर्म की तासीर ( प्रकृति ) बदल जाने को 'संक्रमण' तथा स्थिति + संक्रमण कर्म की मूल प्रकृतियों में, दर्शन - चरित्र मोह नीय में तथा आयु कर्म की उत्तर प्रकृतियों में नहीं होता है ।
SR No.010392
Book TitleKarma Siddhant Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherAjit Kumar
Publication Year
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy