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________________ -[२३]-- यहां पहले व्यापारी को अन्तराय कर्म ने नहीं दवाया था, जिससे कि उसको अपने व्यापार में कोई बिध्न नहीं आया । इस कारण वह धन पैदा करने में सफल हो गया और दूसरे व्यापारी को पहला बांधा हुआ अन्तराय कर्म अपना फल दे रहा था, इस कारण उसको निमित्त ऐसे मिले जिससे कि वह अपने व्यापार में असफल ( नाकामयाच ) रहा । दूसरे जीवों के खाने पीने में विघ्न करने से, दूसरों की काम माने योग्य चीजों को विगाढ़ देने से, साधारण जनता (पब्लिक ) के विरुद्ध कोई लाभ उठाने से, दान करने वाले को दान करने से रोक देने के कारण, किसी के बलवान ( ताकतवर ) बनने में कोई रुकावट खड़ी कर देने से, इत्यादि बुरे कार्यों से अन्तराय कर्म बनता है और इससे उलटे अच्छे कार्य करने से अन्तराय कर्म का बोझा हलका होता है । इन आठ कर्मों में साता वेदनीय, मनुष्य आयु, देव श्रायु शुभ नामकर्म, ऊंच गोत्रकर्म ये कर्म पुण्य कर्म ( अच्छे कर्म ) माने गये हैं, क्योंकि इनके कारण जीवों को कुछ सांसारिक सुख मिलता है । इनके सिवाय शेप सभी पापकर्म यानी दुखदायक बुरे कर्म हैं। जिस समय जीव अच्छे कार्य करता है, सत्य, दया, क्षमा, सरल व्यवहार करता है, परोपकार, विनय, सदाचार से कार्य करता है तब उसके पुण्य कर्मों में अनुभाग ( रस ) बढ़ता
SR No.010392
Book TitleKarma Siddhant Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherAjit Kumar
Publication Year
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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