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________________ -[२२]के निमित्त से होते हैं और चमार, चांडाल आदि मनुष्य, पशु तथा नरक वाले जीव नीचगोत्र कर्म के कारण होते हैं। इस प्रकार नीच, ॐच के भेद से यह कर्म दो प्रकार का है। जो मनुष्य अपने बड़प्पन का घमण्ड करता रहे, दूसरों को छोटा समझता रहे, अपनी बड़ाई और दूसरों की निन्दा करना जिसका खास काम हो, अपनी जाति, कुल आदि का अभिमान करे, कमीने नयाल रक्खे, अच्छे पुरुषों का तथा पूज्य देव, गुरु का विनय न करे (बेइज्जती करे ) वह जीव नीच गोत्र बांधता है और जो इन कार्यों के विरुद्ध अच्छे कार्य करता रहता है उसके ऊंचगोत्र तैयार होता है। -अन्तराय कर्म वह है जोकि अच्छे कार्यों में विघ्न (रुकावट ) डाल दिया करता है या जिसके निमित्त से अच्छे (फायदेमन्द ) कार्यों में विन्न आजावे। जैसे दो व्यापारियों ने एक साथ एक ही व्यापार शुरू किया। उनमें से एक ने तो उस व्यापार में अच्छा धन पैदा किया, किन्तु दूसरे व्यापारी के माल बेचते समय बाजार मन्दा हो गया और खरीदते समय मंहगा हो गया। घर में पुत्र के बीमार हो जाने से वह ठीक समय पर जबकि उसे लाभ ( मुनाफा ) होता खरीद विक्री नहीं कर पाया। फल यह हुआ कि उसने कुछ भी न कमाया। यह तो वात दूर रही किन्तु अपनी पूंजी से भी हाथ धो बैठा।
SR No.010392
Book TitleKarma Siddhant Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherAjit Kumar
Publication Year
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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