SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -[१४]खीचता रहता है । तथा-वह गोला जब तक गर्म बना रहेगा तब तक वह अपनी तरफ पानी को अवश्य खींचता रहेगा। इसी तरह संसारी जीवमें जबतक क्रोध, अभिमान, छल, लोभ, विषयवासना, प्रेम, वैर आदिके निमित्तसे मन, वचन, शरीरकी हरकत (क्रिया) होती रहेगी तब तक जीव कार्माण स्कन्धों को अपनी ओर बराबर खींचता रहेगा और वे खिंचे हुए कार्माण स्कन्ध उस जीव के साथ एकमेक होते रहेंगे। जीव के साथ दूध पानी की तरह एकमेक रूप से मिला हुआ वह कार्माण स्कन्ध ही जीव के ज्ञान, सुख, शान्ति आदि गुणों को मैला करता रहता है, जीव की स्वतंत्रता छीन कर उसको पराधीन बना देता है और जीव को अनेक तरह के नाच नचाता रहता है। उसी कार्माण स्कन्ध को 'कर्म' कहते हैं। भाग्य, तकदीर, देव आदि सब उसी के दूसरे नाम हैं। जैसे प्रामोफोन के रिकार्ड में गाने वाले की ध्वनि (आवाज) ज्यों की त्यों समा जाती है ठीक उसी तरह जीव के साथ मिलने वाले उन कार्माण स्कन्धों में भी जीव की मन, वचन, शरीर से होने वाली अच्छी, बुरी क्रिया (हरकत ) की छाया ज्यों की त्यों अंकित हो जाती है। जीव यदि अपने मन से, बोलने से या शरीर से कोई अच्छी क्रिया कर रहा है तो उस समय के आकर्षित (कशिश) हुए कार्माण स्कन्धों में अच्छा यानी भला करने का असर पड़ेगा और यदि उस समय उसके विचार, वचन या शरीर की क्रिया किसी लोभ, अभिमान आदि
SR No.010392
Book TitleKarma Siddhant Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherAjit Kumar
Publication Year
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy