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________________ –[१३]– बहुत से परमाणु मिल कर स्कन्ध के रूप में हो जाते हैं तब उनमें खास २ पदार्थ बनने की शक्ति हो जाती है । कोई स्कंध लोहा रूप बनता है, कोई पत्थर रूप, कोई हवा, कोई पानी रूप इत्यादि भिन्न २ तरह के स्कन्धों में भिन्न २ तरह के पदार्थ रूप हो जाने की शक्ति हो जाती है। उन ही पुट्रल स्कन्धों में एक तरह के वे स्कन्ध भी होते हैं जिनमें संसारी जीव के सूक्ष्मशरीर बनने की शक्ति ( खासियत ) होती है उन स्कन्धों को 'कार्माण स्कन्ध' कहते हैं । कार्मारण स्कन्ध सब जगह भरे हुए हैं । जीव में चुम्बक की तरह से आकर्षण शक्ति ( अपनी ओर कशिश करने - खींचने की ताकत) मौजूद है तथा उन कार्मारण स्कन्धों में लोहे की तरह जीव की ओर 'खिंच जाने की शक्ति' मौजूद है । तदनुसार संसारी जीव में मन के विचारों से, बोलने से अथवा शरीर की किसी हरकत से वह आकर्षण शक्ति हर एक समय जागृत ( हरकत रूप ) रहा करती है क्योंकि सोते, जागते, उठते बैठते, चलते आदि किसी भी हालत में 'सोचने, बोलने यो शरीर द्वारा कोई काम होने रूप यानी-मन, वचन, शरीरकी कोई न कोई हरकत अवश्य होगी अतः उस श्राकर्षण शक्ति (जैनदर्शन में जिसे 'योगशक्ति' कहते हैं) के द्वारा वे कार्मारण स्कन्ध ( कार्माण मैटर) आकर्पित ( कशिश ) होकर जीव के साथ सदा दूध पानी की तरह एकमेक होकर लिपटते रहते हैं । जैसे पानी में रक्खा हुआ लोहे का गर्म गोला अपनी ओर पानी को
SR No.010392
Book TitleKarma Siddhant Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherAjit Kumar
Publication Year
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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