SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७१ ) ऐसा स्वप्नों का फल सुनकर सिद्धार्थ राजा संतुष्ट होकर स्वप्नों के शास्त्रों को जानने वाले पंडितों के पास आकर हाथ जोड़ प्रसन्न चित्त से वोला. एवमेवं देवाप्पिया ! तहमेव देवाप्पिया ! अवितहमेयं देवापिया ! इच्छियमेयं० पडिच्छियमेयं० इच्छियपडिच्छियमेयं देवापिया ! सच्चे णं एसमट्ठे से जहेयं तुम्भे वयह त्तिकद्दु ते सुमि सम्मं पडिच्छाइ, पडिच्छित्ता ते सुविणलक्खणपाढए विउलेणं असणं पुष्पवत्थगंध मल्लालंकारेणं सकारेइ, सम्माणेइ, सकारिता सम्माणित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दल दलइत्ता पडिविसज्जइ ॥ ८२ ॥ हे देवानुयि विद्वानगण ! आपने कहा है सो सब सत्य है जरा भी झंड उस में नहीं हैं मेरा इच्छित है मैं उसीकी प्रार्थना करता हूं जैसे तुमने कहा है ऐसा ही फल होगा. इतना कह कर फिरसे स्वप्नों का फल विचार कर याद करे. और इस के बाद राजा उन पंडितों को खाने पीने की वस्तुएं और पुष्प वस्त्राभूषण गंधमाला वगैरह उनकी जिंदगी पर्यंत चले इतना धन सत्कार बहु मान करके दिया और नमस्कार कर उनको जाने की आज्ञा दी. तणं से सिद्ध खत्तिए सीहासपात्रो अभुट्ठेड़, - भुट्ठित्ता जेणेव तिसला खत्तियाणी जवणियंतरिया तेऐव उवागच्छर, उवागच्छित्ता तिसलं खत्तियाणीं एवं वयासीं ॥८३॥ एवं खलु देवाप्पिया ! सुमिणसत्यंसि वायालीसं सुमिया तीसं महासुमिया जाव एगं महासुमिण पासित्ता पडिबुज्यंति ॥ ८४ ॥ इमे तुमे देवाप्पिए ! चउद्दस महासुमिणां दिहा, तं उराला गं तुमे जाव - जिणे वा तेलुकनायेंगे धम्मवरचाउरंतचकवट्ठी ॥ ८५ ॥
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy