SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६०) णामणिकणगरयणविमलमहरिहनिउणीवचित्रमिसिमिसिंतविरइअसुसिलिट्ठविसिट्ठलट्ठाविद्धवीरवलए, किंबहुणा ? कप्परुक्खए चेव प्रलंकिनविभृसिए नरिंदे, सकोरिटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेबवरचामराहिं उडुब्वमाणीहिं मंगलजयसबकयालोए अणेगगणनायगदंडनायगराईसरतलवरमाडविथकोडविमतिमहामंतिगणगदोवारियग्रमच्चचेडपीढमद्दनगरनिगमसिट्टिसेणावइसत्यवाहदूअसंधिवाल सद्धिं संपरिवुडे धवलमहामेहनिग्गए इब गहगणदिपंतरिक्खतारागणाण मज्झे ससिब्ब पिपदसणे नरवई नरिंदे नर वसहे नरसीहे अमहिनरायतेप्रलच्छीए दिप्पमाणे मज्जणघरायो पडिनिखमइ ।। ६२॥ वह स्नानागार मानियों की मालाओं से और झरुखों से शोभायमान था जिसकी फश अनेक जाति के मणि रत्नों से सुसजित थी और जहां अनेक उत्तम रत्नों से जडी स्नान के करने की चौकी रक्खी थी उस पर बैठकर फूलों के द्वारा सुगन्धमय किये हुवे जलसे, गंधोदक से तीर्थ जलसे निर्मल, ठंडा और कल्याणकारी जल से विधी अनुमार स्नान करने लगा और कौतुक कृत्य करके स्नान पूरा होने पश्चात् उत्तम वस्त्र से जो लाल रंग का अगोछा होता है उस द्वारा शरीर को पूंछ करके उत्तम जानि के गोशीप चंदन से शरीर पर लेपकर मुगन्धी तेल इत्यादि लगा कर बहुमूल्य उत्तम जानि के वस्त्र पहनकर, फूल माला धारण कर ललाट पर उत्तम केसर का तिलक कर अनेक जाति के उत्तमोनम बहुमूल्य आभूपण पहरे जिनमें मणिरत्न मुवर्ण में जड़े हुवे थे ऐसे आभूपों में हार, अर्द्धहार तीन मरके द्वार मातियो के झूमके वाली कटी मत्र अर्थात् कणकती में कमर गाभायमान थी, कंठ में भी कंठे इत्यादि अंनक अाभूपण थे. अंगुलियों में अंगूठिये पहरी थी भुजा पर भुज बन्ध और हाथों में कड़े पहने हुये थे जिससे अधिक रूप वाला और शोभायमान मालुम होता था मुख कुंडलों में शोभायमान हो रहा था मस्तक पर युकुट था और हार लटकने से छानी का .
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy