SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५८) वालायवकुंकुमणं खचिअ ब जीवलोए, सयणिज्जायो अ. भुट्टेड ।। ६०॥ सिद्धार्थ राजा रात्री वीन जान पर मूर्योदय के समय प्रकाश होन पर सूर्य विकाशी कमल खिलन के लिय जो प्रभान का ममय होता है उस समय पर रक्त अशोक के प्रकाग के समान करके फूल, नाने का मुग्व, गुंजे का आधा भाग पंजीवके ( एकजान का पुप्प ) कतर के पर और नत्र, कोयल के लाचन (क्रोध से लाल हान है ) जामुद्र के फूलों का ढेर, हिंगल, इत्यादि लाल वस्तुओं से अधिक लाल प्रकाशवाला कमलों को जागृत करने वाला एकहजार किरणों वाला तंज से जलना हुवा जिस समय उदय होने वाला था अंधकार का नाश होगया था प्रभान समय में सर्व लाल पीला प्रकाश हारहा था और जिम समय लांग सब जागृत होगये थे ऐसे समय पर सिद्धार्थ राजा अपनी शय्या से उठा. अभुद्वित्ता पायपीढायो पचोरुहइ पचोरुहिता जणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अट्टणसालं अगुपविमइ, अणुपविसित्ता अणेगवायामजोगवग्गणवामदणमलजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते मयपागमहस्सपागेहिं सुगंधवरतिल्लमाइएहिं पीणणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं दप्यणिज्जेहिं सबिदियगायपल्हायणिज्जेहिं अभंगिए समाण तिल्लचम्मंसि निउणेहिं पडिपुराणपाणिपायसुकुमालकोमलतलहिं पुरिसेहिं अभंगणपरिमद्दणुव्वलणकरणगुणनिम्माएहिं छएहिं दक्खेहिं पढेहिं कुसलहिं मेहावीहिं जिअपरिस्समेहि अट्टिनुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए चउब्बिहाए सुहपरिकम्मणाए संवाईणाए संवाहिए समाणे अवगयपरिस्समे अट्टणसालानो पडिनिक्खमइ ॥ ६१ ॥.
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy