SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४७) - कि मानों वो आकाश को भेदने को जाता है वो ऐसी ध्वजा शिव मृदु वायु में आकाश के अन्दर बहुत दूर तक उडती थी. तो पुणो जच्चकंचणुज्जलंतरूवं निम्मलजलपुण्णमुत्तमं दिप्पमाणसोहं कमलकलावपरिरायमाणं पडिपुण्णसव्वमंगलभेयसमागमं पवररयणंपरायंतकमलट्ठिय नयणभूसणकरं पभासमाणं सवो चेव दीवयंतं सोमलच्छीनिभलणं सनपावपरिवज्जिअं सुभं भासुर सिरिवरं सब्बोउयसुरभिकुसुम भासत्त मल्लदा पिच्छइ सा स्ययपुरणकलसं ६ ॥ ४१ ॥ कलश का वर्णन नवौ स्वम में त्रिशला राणी ने कलश देखा वो उत्तम जाति के सोनेका अथवा उत्तम चांदीका बना हुवा था देदीप्यमान रूपथा, निर्मल जल से पूरा भरा हुवा था, उत्तम कांति की शोभा वाला था, कमलों के समुह से विराजमान था, सर्व पूरे मंगलों के कारणों के एकत्र होनेका स्थान था, उत्तम जाति का प्रघर रत्न और अन्दर से सुगंधी कण उडाने वाले कमल में स्थापित किया हुवा था, नेत्रों का भूषण प्रकाशमान, सर्थ दिशाओं में दीपता, सौम्य लक्ष्मी संयुक्त और सर्व पापों से रहित शुभ, भासुर, शोभा वाला, सर्व ऋतु के सुरभी कुसुमों से उपर से नीचेतक मालायें जिस में लगी थी ऐसा चांदीका पूर्ण कलश था. तो पुणो पुणरवि रविकिरणतरुणवोहियसहस्सपत्तसुरभितरपिंजरजलं जलचरपहकरपरिहत्थगमच्छपरिभुज्जमाणजलसंचयं महंत जलंतमिव कमलकुवलयउप्पलतामरसंपुडरीयउरुसप्पमाणसिरिसमुदएणं रमणिज्जरूवसोहं पमुइयंतभमरगणमत्तमहुयरिंगणुकरोलि (ल्लि) जमाणकमलं २५० कायवगवलाहयचककलहंससारस गधिनसउणगणमिहणविज्ज माणसलिलं पउमिणिपत्तोवलग्गजलविंदुनिचयचित्तं पिच्छह
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy