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________________ ( ४६ ) रिक्खरूवं रत्तिसुद्धृतदुष्प्रयारपमद्दणं सी वेगमहणं पिच्छड़ मेरुगिरिसयय परियद्ययं विसालं सूरं रस्सीसहस्त्रपयलियदित्तसोहं ७ ॥ ३६ ॥ सूर्य का वर्णन. इसके बाद सातवें स्वम में अंधकार के पडल को फोड़ने वाला तेजसे जाज्वल्यमान ( जलाने वाला ) रक्त अशोक, अंकुश, केसुडे लालचणोंटी (चिमी ) इत्यादि रंग की वस्तु समान लाल, दिन विकासी कमल को प्रकाशक, बारै राशि को गिनती में लाने वाला, आकाश तलका मढीप ( दीपक ) हिम के पटलको फोड़ने वाला, गृह समुदाय का वडानायक, रात्रिका विनाशक, उदय और अस्त समय दो २ बड़ी सुख से देखने योग्य, बाकी के समय में दुःख से देखने योग्य, रात्री में भटकने वाले दुराचारीयों को रोकने वाला ठंड के वेगको शांत करने वाला, मेरुपर्वत के चारों ओर निरंतर फिरने वाला ऐसा विशाल सूर्य हजार किरण वाले को देखा जो देदीप्यमान था. तो पुणो जच्चकणगल द्विपट्टि समूहनीलरत्तपीयसुकिलसुकुमालुल्लसियमोरपिच्छकयमुद्धयं धयं श्रहियसस्तिरीयं फालि संखंककुंददगरयरययकलसपंडुरेण मत्थयत्थेण सीहेण रायमाणेण रायमाणं भित्तुं गगणतलमंडलं चैव ववसिएणं पिच्छह सिवम उयमारुयलयाहकंपमाणं चप्पमाणं जयपिच्छणिज्जरूवं ८ ॥ ४० ॥ ध्वजा का वर्णन. आउ स्वप्न में त्रिशला राणी ने जो ध्वज देखा उस ध्वजकी लट्टी उत्तम सोन की थी, और नील, राम, पीले धोले, मारके सुकुमाल पीछों का शिखर जिसपर बना हुवा था, अधिक शोभायमान स्फटिक रत्न, शंख, अंक, कुंद पाणी के बिंदु, चांटीका कलश इत्यादि समान सफेद सिंह से शोभायमान और पवन से उड़ता कपड़ा में चित्र का सिंह उड़ता था, वो ऐसा दिखता था
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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