SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३६) जिस रात्री को श्रीमत् महावीर प्रभु को देवानन्दा की कुंख में से निकाल कर त्रिशालारानी की कुंख में रक्खे उस रात्री को त्रिशलाराणी जिस उत्तम शयनागार में सोती थी उसका किंचित् मात्र स्वरूप बताते हैं प्रथम तो वो शयनागार ऐसा मनोहर था कि जिसका वर्णन हो ही नहीं सक्ता शयनागार की भीतरी दीवारों पर उत्तमोत्तम चित्र बनाये हुवे थे और दीवारों का बाहरी भाग घिसकर सफेद चलकादार बनाया हुवा था ऊपर का भाग अर्थात् छत उत्तमोत्तम चित्रों द्वारा चित्रित थी और मणी रत्न इत्यादि जडे हुवे थे जिससे अंधकार दूर होता था नीचे की जमीन अर्थात् फर्श भी अति सुन्दर थी और जहां पांच वर्ण के उत्तम सुगंध वाले पुष्पों के ढेर रक्खे हुवे थे और फूल सजाये हुवे थे और जो कालागुरु प्रवर कुंदुरुक तुरूस्क इत्यादि अनेक प्रकार के सुगंधी पदार्थों को धूप किये जाने से बहुत सुगंधित होरहा था ऐसे शयनागार में शय्या जो सुगंधी चूर्णों द्वारा सुगंधी वनाई हुई थी जिसके दोनों बाजू पर शरीर प्रमाण के तकिये रक्खे हुवे थे और मस्तक और पैर की तर्फ भी तकिये रखे हुवे थे जिससे शय्या चारों तर्फ से ऊंची व बीच में ऊंडी थी गंगा नदी की रेती के समान जिसका वीच का भाग कोमल और नरम था और जो रेसम के उत्तम वस्त्र से (खाट पछेबड़े से ) ढकी हुई थी जिसके ऊपर रज खाण ढका हुवा था जिस पर मच्छरदानी रक्तवस्त्र की लगी हुई थी शय्या में चमड़ा लगा हुवा था अत्यन्त कोमल जैसे बूई अथवा एक जाति की कोमल वनस्पति समान, मक्खन समान वा आकड़े की रूई समान कोमल था ऐसी उत्तम कोमल शय्या में सोती हुई त्रिशला राणी कुछ जागृत अवस्था में चौदह महा स्त्रम देखकर जागृत हुई. त्रिशलाराणी ने प्रथम स्वम में हाथी देखा वो हाथी कैसा है कि चार दांत वाला है मेघ के बरसने वाद के वादल समान उज्वल है मोती के हार के समान क्षीर सागर के जल के समान चंद्रकिरण समान चांदी का पहाड़ समान जिसका सफेद रंग है ऐसा धोला है जिसके कुंभ स्थल से मद चू रहा है जिसके मस्तक पर भवरों के झुंड बैठे हैं और इन्द्र के ऐरावत हाथी के समान जो बडा है और गाजते हुवे विपुल मेघ के समान गर्जारव ३ मधुर आवाज करने वाला है और सर्व शुभ लक्षणों से सुशोभित और श्रेष्ठ विशाल अंग वाला है. नोट-आज भी सफेद रंग का हाथी प्रदेश में पूजनीक गिना जाता है.
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy