SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११ ) तुला रा थारुग्गतुट्ठिदीहाउयमंगल्लकल्ला कारगा पिए ! सुमिया दिट्ठन्ति कट्टु भुज्जो भुज्जो अणुवूहइ ॥ १० ॥ इस प्रकार बालक की विद्या बुद्धि की प्रशंसा करते हुवे अपनी भार्या देवानंदा से कहता है कि हे देवानुप्रिये जो तुमने स्वप्न देखे हैं वो सर्व उत्तम २ फल देने वाले हैं. इसलिये मैं उनकी बार २ प्रशंसा करता हूं. सूत्र (११-१२ ) तणं सा देवादा माहणी उसभदत्तस्स अंतिए एममट्ठ सुच्चा निसम्म हट्ट जाव हियया जाव करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावतं मत्थए अंजलिं कहु उसमदत्तं माहणंएवं वयासी ॥ ११ ॥ rahi देवापित्रा ! तहमेयं देवाणुपिया ! अवितहमेयं देवापित्रा ! संदिद्धमेयं देवागुपित्रा ! इच्छियमे देवापिया ! परिच्चित्रमेयं देवापित्रा ! इच्छियपडिच्चियमे देवाणुपित्रा ! सच्चे णं एसमट्टे, से जहेयं तुन्भे वहति कट्टु ते सुमि सम्मं पडिच्छर, पडिच्छित्ता उसभदमाहणं सद्धिं उरालाई मास्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ || १२ | देवानंदा अपने स्वामी के ऐसे वचन सुनकर हाथ जोड़ मस्तक नवा कर बोली कि हे स्वामिन्! आप कहते हो वो सर्व सत्य है. मेरी इच्छानुसार है और आपके बताये हुवे फल में मुझे किंचितमात्र भी संदेह नहीं है. मैं इसलिये प्रार्थना करती हूं. इस प्रकार विनय पूर्वक कह कर और स्वप्नों को फल सहित मन में याद रखती हुई अपने स्वामी ऋषभदत्त ब्राह्मण के साथ पुन्य संपदा अनुसार मनुष्य जन्म के अनुकूल सुख भोग में अपने दिन व्यतीत करने लगी.
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy