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________________ (१०) ऋषमदत्त ब्राह्मण वेट वेदान्त का अच्छा विद्वान् था जिसने अपनी विद्या द्वारा सुन्दर रूपवान वालक होने का बनाकर सर्वे उत्तमोत्तम वाघ लवण भी बताये. मुत्र (९) सेवित्रणं दारए उम्मुक्कबालभाव विनायपरिणयमित्ते जुब्बणगमणुपत्ते, रिउव्वेन-जउग्र-सामवेअ-अथव्वणवेश इतिहासपंचमाणं निघंटुटाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेत्राणं सारए पारए धारए, मडंगवी, सद्वितंतविसारए, संखाणे सिक्खाणे सिक्वाकप्पे वागरण वंदे निरुत्ते जोइसामयण अन्ने अवहुसु वंभरणएसु परिवायएसु नएसु सुपरिनिहिए प्राविभविस्सइ ।। ६ ।। __ वालक के विद्वान् होने के सम्बंध में ऋषभदत्त ब्राह्मण कहता है कि है भद्र जिस समय यह बालक विद्या पढ़कर युवा अवस्था को प्रहण करेगा उस समय चार वेद और बेदान्त का पारंगामी होगा. ___ (नोट-ऋग्वेद, यजुर्वेद, ज्यायवद, अथर्ववेद ये चार वेदों के नाम हैं) (वेद के साथ इतिहास और निघंटु जोड़न से ६ होने हैं और अंग उपांग भी होते हैं). उनका रहस्य जानेगा. और दूसरों को विद्याध्ययन करावेगा. अशुद्ध उधारण से रोकेगा. और मूलने वालों को फिरस समझा कर विद्वान् बनावंगा. शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छंद, ज्योतिष, निरयुक्ति. इन छ अंगों में धर्मशास्त्र मीमांसा, तर्क विद्या, पुरान इत्यादि उपांगों में पष्टी तंत्र इत्यादि कपिल ऋषि के मत के शान्त्रों का पारंगामी अर्थात् पूर्ण ज्ञानी होगा. ब्राह्म मूत्रों का और परिव्राजक के ग्रंथों का भी पूर्णतया जानने वाला होगा. अर्थात् संसार में जितने दर्शन और मत विद्यमान है उन सर्व का पंडित होगा. और सर्व प्राणियों को यथार्थ मार्ग बनावेगा और सर्वज्ञ होकर सर्व जीवों के संश्रय निवारण करेमा. मूत्र (१०) तं उराला णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिवा, जाव
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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