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________________ (१७) मकर वजस्वामी को शुष भावना से जातिस्पग्ण ज्ञान हुआ दीक्षा लेने का भाव कर माता को खेद लाने को रोना शुरु किया माने उसी गुगत्र खेद लाकर उसके वापको दिया वो बोले कि गुरु थाना से लेजाना { पतु अर लेकर तुझे पिछा नहीं मिलेगा ऐसा सुनकर भी माताने पुत्र का प्रेम छोड़ दि. या गुरुने उसका बोझा देखकर वज्रनाम रखा बड़े होने से टीचा दी और उन्होंने शेटी उम्र में ही सब सूत्र दुसरों के मुह से नुनकर सीग लिरे थे और अधिक ज्ञान होने से आचार्य पदवी वज़स्वामी को दी मिली एक सेठ पुत्रो ने उनके गुणों को सुनकर उनसे पाणना चाहा मिलने पुत्री और धन दोनों उनके पास लेजा कर दिये परन्तु निराकांति मुनि ने वैराग्य स्वरूप समझा कर फ. न्या रुकमणी को दीक्षा दीलवाई और धन दीक्षा नहात्मय गं खरवाना. वो बख्त देवोंने परीक्षा कर निस्पृही अप्रमादि मुनिको दो मियां दी उनसे प्रा. त्युत्तम गुणों का कथन उनके चरित्र से ही जान लेगा नापूसरी शुनि कहां तक हे आर्यवन स्वामी के शिष्य आविनसेन उत्कांशिक गोलके थे. . थार्य वनसेन के चार शिष्य हुए। - भार्य नागिल, पामिल, जयंत, सापस उन चारों से नागिला. पोपिला, जयंति, तापसी शाखा निकली है. वित्थरवायणाए पुण अजजसभहायो पुरो थेरावली एवं पलोइज्जड़, तंजहा-थरस्त णं अज्जजसभइरस तुंगियागणसमुत्तस्स इमे दो थेरा प्रतवासी ग्रहायचा भिण्णाया हुत्था, तंजहा-धेरे अज्जमदयाहू पाईणसगुत, थेरे अज्जमं. भूयविजए मादरमगुत्ते, रस्म णं अज्जमवाहुस्स पाईरामगुत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अतेवामी श्रटायचा अभिराणाया हुत्था, तंजहा-धेरे गोदासे १, थेरे अग्गिदत्त २, थेरे जगणदत्ते ३, थेरे सोमदत्ने ४ कासवगुत्तेण, धेरैहितो गोदासहिनो कासवगुत्तेहिंतो इसणं गोदामगणे नामं गणे निग्गए. नस्ल शं इमामो बत्तारि साहाओ एवमाहिजति तंजहां-ताप
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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