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________________ मद्दे को भेज चार मास तक वेश्या ने उनकी मुग्ध करना चाहा परन्तु मुनिराज ने उसको प्रतियोध कर श्रावककृत धारण कराकर परम श्राविका बनाई. पेश्या रागवती होने पर भी उसके घर में रहकर ग्रनचर्य पालना दुप्फर होने से स्थूलीभद्र का गहिमा अधिक माना जाना है प्रभवा स्वायी, शय्यंभव स्वामी, यशोभद्र, संयूतिविजय, भद्रवाट यह पांच पूर्ण चौट पूर्वधारी हुए परन्तु सात साध्वीएं बांदन को गई उस समय स्थूलीभगनी ने अपनी विद्या का प्रभाव बताने को सिंह रूप किया यह बात जानकर भद्रबाहु जो स्कूलीभद्र को पढ़ाने चाले ये उन्हान १० पूर्व अर्थ साथ पढाये परन्तु संघ के थाग्रह से ४ पूर्व मूल पत्र दिये अर्थ नहीं दिया. ___ स्थूलीभद्रजी के दो शिष्य हुए ऐलापत्य गोत्र के आर्य महागिरि और पाशिष्ठ गोत्र के आय मुइस्ति स्वामी हुए. आर्य महागिरि क्रियापान जिन कल्प विच्छेद होने पर भी उसकी तुलना करते थे आर्य सुहस्ति के हाथ से एक रंक ने दीक्षा पाकर एकही दिन में अमीर्ण रोग से मरने के समय उत्तम भाव रखने से उज्जएिनी नगरी में संपनि नामका राजा हुआ और वो ही गुरु को रथयात्रा में देग्यकर जाति म्मरण शान पाकर पूर्वोपकारी गुरु का महल से नीचे उगर कर नमस्कार किया गुरु को स्मृति देने से श्रुतवल से गुरु ने उसको पिछान कर साधु होने को कार परन्तु राजा ने यो अशक्य ववाकर श्रावक व्रत लिये और जैनधर्म की महिमा बढाई २१ लाख मंदिर सवा कोट मतिया बनवाई जनम बढाने के उपाय -निये अशोक राजा का वंशज संमनि राजा हुआ है। संखिचवायलाए अज्जजसमदायो अग्गयो एवं धरावली भणिया, तंजहा-थेरस्स णं अज्जजमभदस्स तुगियायणसगुत्तस्स धंतेवासी दुवे थेरा-थेरे अज्जसंभूविजए माढरसगुत्ते, थेरे अज्जमबबाह पाईणसगुत्ते, थेरम्म एं श्र. ज्जसंभूयविजयस्स माढरसगुत्तस्स अंतेवासी धेरै अज्जथलभद्दे गोयमसगुत्ते, धेरस्म णं अज्जथूलभदा गोयममगुताय यतेवासी दुवे थेरा-धेरे अज्नमहागिरी गालावरमगुत्ने, थेरे
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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