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________________ (१६९) सब नाभि कुलकर ने उस सुन्दरी जिसका नाम सुनन्दा था और सुमंगला जो साथ जन्मी थी उन दो कन्याओं के साथ ऋपदेव की यादी की लन्न विधि का मब अधिकार प्रथम तीर्थंकर का इन्द्र को करने का है इसलिये इन्द्र इन्द्राणी ने आकर लग्नविधि पनाई. ( जैन लग्न विधि की उस दिन से शरुवात हुई है). पत्रोउत्पत्ति छ लाख पूर्व (८४००००० वर्प का पूर्वाग होता है ८४००००० पूर्वाग का पूर्व होता है ) तक संसारवास में अपभदेव प्रभु को सुमंगला से भरत, ब्राह्मी, पुत्र पुत्री हुए ( दोनों साथ जन्मने वाले को युगलिक कहते हैं ) और सुनंदा को पाहुवल सुंदरी पुत्र पुत्री हुए उसके पाद ६८ पुत्र सुमंगला को ४६ मोड़ के से हुए. सब मिलके दो रानी के १०० पुत्र और २ पुत्री हुई. ___ उसमे णं अरहा कोसलिए कासवगुत्ते णं, तस्स एवं पंच नामधिज्जा एवमाहिज्जति, तंजहा- उसमे इ वा, पढमराया इवा, पढमभिक्खायरे इ वा, पढमजिण इ वा, पढमतित्थयरे इ वा ॥ २१०॥ ऋषभदेव के नाम. ऋषभदेव के ओर नाम प्रथम राजा, प्रथम साधु, प्रथम जिन, प्रथम तीर्यकर सब मिल के पांच नाम हैं. कल्पक्ष का रस कम होने से ममत्व यहा परस्पर युगलिक लड़ने लंगहा, मा, धिक ऐसी नीति से मानने नहीं थे प्रामंदर के पास सघन जाकर वह बात सुनाई प्रभुने कहा अब तुमारे को एक राना मुकरर करना कि यो गुनहगारको दंड देवे उन्होंने वह मंजर लिया गौर नाभिकुलकर फो गजा के लिये मार्थना की प्रषभदेव को योग्य देखकर नाभिागकरने उन युगलिकों द्वारा राजा बनाने को राज्याभिषेक के लिये कमल पत्रों में जल लाने को कहा लावें उस पहिले इन्द्र ने अवधि ज्ञान द्वारा जान कर स्वयं भाकर मन को योग्य रीति मे राज्याभिषेक की सब विधि की युगलिक याग नर पमंदर
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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