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________________ ( १६६ ) तेणं कालेणं तेयं समएणं उसमे णं अरहा कोसलिए चउत्तरासाढे अभी पंचमे हुत्था, तंजहा - उत्तरासढाहिं चुए चइता गव्र्भ वकते जाव अभीहणा परिविव्व ॥ २०५ ॥ संभवनाथ से २० लाख क्रोड़ सागरोपम और शेष शीतलनाथ की तरह. अजितनाथ से ५० लाख क्रोड सागरोपम और शेष शीतलनाथ की तरह. ऋषभदेव प्रभु का चरित्र कहते हैं तेरह भव पहिले सम्यक्त्व पाया उन सेरह भवों का वर्णनः - ( १ ) धनासार्थवाह ने मुनि को घी का दान दिया वहां सम्यक्त्व पाया (२) उत्तर कुरुक्षेत्र में युगलिक ( ३ ) सौधर्म देवलोक में देव (४) जंबूद्वीप के पश्चिम महाविदेह मे गंधिलावती विजय में महावल राजा ( ५ ) ईशान देव लोक में ललितांग देव (६) जंबूद्वीप के पूर्व महाविदेह में पुष्कलावती विजय में लोहार्गलनगर में वज्र जंघ राजा, (७) उत्तर कुरुक्षेत्र में युगलिक, (८) प्रथम देवलोक में देव, (६) जंबूद्वीप महाविदेह क्षिति प्रतिष्ठित नगर में सुवि वैद्य, (१०) मित्रों के साथ चारमा देवलोक में देव, (११) जंबूद्वीप के महाविदेह में पुष्कलावती विजय में पुंडरीकिणी नगरी में पूर्व मित्रों के साथ भाई हुए वैद्य का जीव वज्रनाभ चक्रवर्त्ती हुए है भाई के साथ दीक्षा ली चक्रवर्त्ती ने २० स्थानक पद आराधी तीर्थंकर पद बांधा, (१२) छे भाई सर्वार्थ सिद्ध विमान में देव हुए, (१३) ऋषभदेव तीर्थंकर हुए. ऋषभदेव के ४ कल्याणक उत्तराषाढा और मोक्ष अभिजित नक्षत्र में हुए. च्यवन, जन्म दीक्षा केवल ये चार उत्तराषाढा में और मोक्ष अभिजित नक्षत्र में हुआ. कुलकरों की उत्पत्ति | ऋषभदेव इस अवसर्पिणी के तीसरे आरे के अंत में हुए हैं उनके पूर्वज कुलकर कहलाते थे पल्योपम का आठवा भाग (2) बाकी रहा तत्र युगलिकों मैं विमल वाहन युगलिक मनुष्य हुवा उसका पूर्व भव का मित्र कपट कर 'हाथी' हुआ था वो स्नेह से अपने पर बैठाकर चलता था कल्पवृक्ष का रसकम देखकर ममत्व बढा और न्याय करने को सबने मिलकर जाति स्मरण ज्ञान
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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