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________________ (१४४) थ,७०० साधु और १४०० माघी मोक्ष में गई, ८०० साधु अनुचर विमान में गरे जी देव भत्रम मुख भागकर मनुष्य होकर मुक्ति जावेंगे. समणस्त भ० दुविहा अंतगडभृमी हुत्था, तंजहा-जुगंतगड़भूमी य, परियायंतगडभूमी य, जाव तचायो पुरिसजुगायो जुगंत०, चउवासपरियाए अंतमकासी ॥ १४५ ॥ ___भावान की अनकन भूमि (१) जुगत (२) पर्याय अंतकन उनमें मातम इंठभूति नुवर्मा जंबु पेमे नान पाटनक मांद रहा, और वीर प्रभुके केवल ज्ञान होन वाट चार वर्ष होने से एक पुरुष मोच गया. अर्थात तीन पाट और चारवर्ष दोनों अंतकृत भूमि है. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे तीस वासाई अगारवासमझे वसित्ता साइरेगाई दुवालस वासाई छउमत्थपरियागं पाउणित्ता देसूणाई तीसं वासाई केवलिपरियागं पाउणित्ता, वायालीसं वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता वावत्तरि वासाइं सव्वाउयं पालत्ता वीणे वेयणिज्जाउयनामगुत्ते इमीसे प्रोसप्पिणीए दूसमसुसमाए समाए बहुविक्वंताए तिहिं वासेहिं अद्धनवमेहिं य मासेहिं ससेहिं पावाए माझिमाए हस्थिवालस्स रगणो रज्जुयसभाए एगे अबीए छ?णं भत्तणं अपाणएणं साइणा नक्वत्तणं जोगमुवागएणं पच्चूसकालसमयसि संपलिग्रंकानसराण पणपन्नं अज्झयणाइंकल्लाणफलविवागाइं पणपन्नं अज्झयणाई पावफलविवागाई छतीसं च अपुट्ठवागरणाई वागरित्ता पहाणं नाम अझयणं विभावेमाणे २ कालगए विक्कंते समुज्जाए चिनजाइजरामरणवंधणे सिद्धे युद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुड़े सम्बदुक्खप्पहोणे ॥ १४६ ॥
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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