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________________ (१४३) समणस्स णं भगवनो० सत्त सया केवलनापीणं संभिएणवरनाणदंसणधराणं उक्कोसिया केवलनाणिसंपया हुत्था ॥ १३६ ॥ , समणस्स णं भ० सत्त सया वेउन्धीणं अदेवाणं देविड्- . ढिपत्ताणं उक्कोसिया वेउब्वियसंपया हुत्था ।। १४० ॥ . समणसणं भ० पंच सया विउलमई अडढाहज्जेस दीवेसु दोसु अ समुद्देसु सन्नीणं पंचिंदियाएं पज्जत्तगाणं मणोगए भावे जाणमाणाणं उकोसिश्रा विउलमईणं संपया हुत्था ॥ १४१ ॥ - समणस्स णं भ० चत्तारि सया वाईणं सदेवमणुप्रासुराए परिसाए वाए अपराजियाणं उक्कोमिया वाइसंपया हुत्था ॥१४२॥ समणस्स णं भगवत्रो० सत्त अंतेवासिसयाई सिद्धाई जाव सन्धदुक्खप्पहीणाई, चउद्दस अज्जियासयाइं सिद्धाइं १४३ समणस्स णं भग० अट्ठ सया अणुत्तरोववाइयाणं गइकलाणाएं ठिकल्लाणाणं प्रागमेसिभदाएं उकोसिश्रा अणुत्तरोववाइयाणं संपया हुत्था ॥ १४४ ॥ महावीर प्रभु की संपदा • इंद्रभूति श्रादि १४००० साधु-और चंदना, वगैरह ३६००० साध्वी, संख शतक मादि १५६००० श्रावक, सुलसा रंवती आदि ३१८००० श्राविका, चउद पूर्वी जिन नहीं परंतु जिन माफक श्रुत ज्ञान से सत्य भापी श्रुत केवली साधु की संपदा थी, लब्धिवंत ऐसे १३०० अवधि ज्ञानी की संपदा थी, ७०० फेवल ज्ञानी थे-७०० वैक्रिय लब्धिधारक थे-५०० विपुलमति मन पर्यवं ज्ञानी २॥ द्वीप दो समुद्र में संज्ञी पंचेंद्री के मनके भावों के जानने वाले थे, ४०० वादि भगवानके थे जो देवता मनुष्य की सभा में युक्ति से प्रतिवादि को जितते
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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