SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११६) - पूर्व स्थान में गोशाले की चेष्टाएं. प्रभु को न देखने से पीछे ढूंढता ढूंढता अपनी पूर्व भिक्षा के उपकरण छोड़ कर मुख मस्तक मुंडाकर कोलाग सन्निवंश में स्वयं शिष्य होकर साथ रहा. प्रभु जब मुवर्ण खल गांव की गये, रास्ते में दूध वाले एक बड़े मट्टी के बरतन में दूध पाक बनाने थे वो देखकर गोशाला बोला भोजन कर पीछ जावेंगे सिद्धार्थ ध्यंतरने कहा वो वरनन फुटकर दुध पाक नयार न मिलेगा धवालों ने वो बात जानकर रक्षा की तो भी बरतन फूट गया वो देखकर गांशाला ने निश्चय किया . कि जो होने वाला है वो होता ही है । प्रभु वहां म विहार कर ब्राह्मण गांव में गये वहां पर नंद बार उपनंद दो भाई थे वे दोनों अलग रहन थे नंद के वहां प्रभु ने पारणा किया गौशाला उप नंद के घर में वासी अन्न मिला जिससे गुस्सा लाकर श्राप से उसका घर जला डिया प्रभुवहां से चंया नगरी गये दो मास के दो वक्त तप कर नीसरा चतुर्मास पूरा किया. वहां से प्रभु विहार कर कोल्लाग सन्निवंश में गए उजाड़ घर में कार्यो, त्सर्ग में रहे. गोगाला भी साथ था उसने वहां पर एक सिंह नामक जागीरदार के पुत्र ने विद्युन्मति नाम की दासी के साथ और में छुपा संबंध किया. वो देख कर इंसने लगा गौशाला पर क्रांध कर वो मारने लगा. गौशाला बुम पाड़ने लगा तब छोड़ा | गोशाला को सिद्धार्थ व्यंनर ने हित शिक्षा दी कि ऐसे समय में माधुओं को उपेक्षा करनी योग्य है गंभीरता रखनी हांसी नहीं करनी । सब जीव कर्मवश अनाचार भी करते हैं. प्रभु वहां से पानालक गांव में गए वहां उजाड़ घर में ध्यान में खड़े थे वहां स्कंद नामका युवक को दासी साथ एकांत में दुराचार करता देख के गोगाला ने हांसी की और उसको मार खाना पड़ा प्रभु वहां मे विहार कर कुमार सन्निवेश में चंपा रमणीय उद्यान में कार्योस्मर्ग (ध्यान ) में रहे, पार्श्वनाथ के साधनों का गोशाले से मिलाप. मुनि चन्द्र नाम के मुनि बहुत साधुओं के परिवार के साथ विहार करते । आय उनको दबकर पूछा आप कौन हैं। वे वाले हम निग्रंथ है गोशाला बोला
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy