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________________ करने की ( खाने की) वक्त और संध्या प्रतिक्रमण में याद कराया कि उसका दंड लो परन्तु उसने दंड लिया नहीं साधु पर रात को क्रोधकर मारने को दोड़ा बीच में स्तंभ आया उससे टक्कर खाकर मर ज्योतिषी देव हुआ, और वहां से चव (मर ) कर उसी आश्रम में ५०० तापसी का अधिपति चंड कौशिक नाम का हुआ, और श्राश्रम में फल लेने को आने वाले राज कुमारों पर क्रोधी हो कर कुलाडा लेकर मारने को दौड़ा बीच में कुवा आया खबर नहीं रहने से उसमें गिरकर मरा और उसी आश्रम में दृष्टि विप सर्प हुथा और चंड कौशिक नाम से प्रसिद्ध हुआ. सर्प को प्रभु का आना देखकर बड़ा क्रोध हुआ क्योंकि उसके डर से कोई भी मनुष्य वा प्राणी जलने के भय से आता नहीं था, प्रभु श्राकर कायोसन ध्यान में मेरु पर्वत समान थिा खड़े थे तो भी गुस्सा लाकर पूर्व स्वभाव से प्रभु को जलाने को दृष्टि द्वारा सूर्य की तरफ देखकर ज्वाला फेंकने लगा परन्तु प्रभु के तंज के सामने उसकी दृष्टि का कुछ भी जोर न चला तब चर्गों में जाकर दंश किया और पिछा हटा पुनः पुनः दंश मारने पर भी प्रभु न मरे न क्रोध किया और जब लाल लोह के बदल दुध समान लोह निकला तब सर्प का कोष कुछ शांत हुआ कोमल भाव होने पर प्रभु ने बांध दिया कि हे चंड कौशिक ! कुछ समझ समझ, पूर्व में क्रोधकर तेंन कैसी युरी अवस्था प्राप्त की हैं ! तब प्रभु की शांत मुद्रा पर्वत समान धर्यता अमृत समान वचनों से अपूर्व शांति प्राप्त करते ही उसने निर्मल हृदय से विचार किया कि तुन जाति स्मरण ज्ञान हुआ और अपनी अधम दशा देखकर " मैंने यह क्या दुष्ट चेष्टा की तो भी प्रभु ने मेरा उंदार किया", ऐसा विचार कर प्रभु को नमस्कार तीन प्रदक्षिणा द्वारा कर प्रभु की आज्ञानुसार अनशन कर क्रोध रहित होकर दर में मुखकर पड़ा रहा, मार्ग में जाने वाली महीआरियों ने दूध दही घी से पूजा की वो चीकट से कीड़िओं ने आकर उसका शरीर चालणी समान काटकर कर दिया किंतु मनु ने शांत सुंधारेस का सिंचनकर स्थिर चित्तरखा, वो मरकर आठमे देवलोक (सहस्रार ) में देव हुआ प्रभु भी उसका उद्धार कर विहार कर दूसरी जगह गये. . उत्तर वाचालं गांव में नागसेन ने प्रभु को पारणा में क्षीराम दिया वो से प्रभु श्वेतांची नगरी में गये पूर्व में केशी गणधरने पनि बोधित प्रदेशी राजा ने 'यही प्रभु की महिमा बढाया.
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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