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________________ (११३) ( ५ ) स्वप्न में याप समुद्र नर है उससे आप भव समुद्र तरांगे. . . (६) आपने उदयभान ( उगना ) मूर्य को देखा जिससे आप केवलझान प्राप्त करोमे. (७) आपने उदर के आंतरहों ( ) से मानुषोत्तर पर्वत को लपेटा है जिससे आपकी कीर्ति तीन भुवन में होगी. (८) आप मेरु पर्वत के शिखर पर चढ उससे आप समवसरणमें सिहासन पर बैठकर देव मनुष्यों की सभा में धर्म कहोगे. (९) आपने देवों से मुगोभिन पद्मसरोवर देखा उससे आपकी संवा भुवनपति, व्यंनर, ज्योनिपी, वैमानिक देव करेंग. (१०) परंतु आपन दो मालाएं देखी उसका फल में नहीं जानता आप ही कहे. - प्रभुने उसको कहा है उसल ! मैं दो प्रकार ( साधु और ग्रहस्थों) का सर्व विरनि देव विरनि धर्म कहूंगा उसल और दूसरे लोग वो सुनकर अपने स्थान गये प्रभुन भी चतुर्मास निर्वाह किया, .. __प्रभु पीछे विहार करके मोराक सन्निवंश तरफ गये वहां प्रभु जब प्रतिमा पारी कार्योत्सर्ग में स्थिर रहे तब प्रभु की महिमा वढाने का सिद्धार्थ व्यंतर निमित्त ( भविष्य की बातें ) कहने लगा. अछेदक नाम के निमित्तिया को द्वेष उत्पन्न हुआ और तृण हाथ में पकड़ कर कहा उस के टुकड़े होंगे वा नहीं ? व्यंतर ने ना कही वो जूठ करन को अछेदक ने तृण छेठने की तैयारी की इन्द्र ने ऐसी उसकी उन्मत्तताई देख कर अंगुली छेढदी सिद्धार्थ व्यंतर ने भी क्रोधा. यमान होकर लोगों के सामने देवमाया से चमत्कार बनाकर उसपर कलंक आरोपण कर तिरस्कार कराया जिससे अछेदक गभराकर प्रभु के चरणों में पड़ा वीर प्रभुने उसका दुःख देखकर वहां से विहार करा रास्ते में कनक खल तापस के आश्रम में चंद कौशिक सर्प को प्रति बोध किया. ' . . . __ . चंड कौशिक की कथा । . - एक महान तपस्वी साधु ने पारणा के दिन रास्ते में प्रमाद से एक छोटा मेहक अंजान वा प्रमाद से मारा था वो साथ का छोटा साधुने उस वक्त गोचरी
SR No.010391
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikmuni
PublisherSobhagmal Harkavat Ajmer
Publication Year1917
Total Pages245
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size12 MB
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