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________________ जीवामिगमले 'हालिदभेरह वा हारिदा भेद इति वा, हरिद्राभेदो हरिद्राछेदः, 'हालिगुलियाइ वा' हारिद्रागुटिका इति दा, हारिद्रासार निर्वतिता गुटिका 'हरियालियाइ वा' हरितालिका इति वा, पृथ्वी विकाररूपा लोकमसिद्धा हरितालिका, 'हरितालियाभेपड वा' हरितालिका भेद इति वा, हरितालिकाभेदो हरितालिकाछेदः, 'हरितालियागुळियाइ वा' हरितालिकागुटिकेति वा, हरितालिकासारनिर्वत्तिता. गुटिका हरितालिकासुटका, 'चि उरेइ वा' चिकुर इति वा, चिकोरो रागद्रव्यविशेषः, 'चिउरंगरागेइ वा' चिकुराङ्गगग इति वा, चिकुरसंयोगनिमित्तो वस्त्रादौ. रागश्चिकुरागराग इति । 'वरकणगेइ वा वरकनकमिति वा, वरकनकं जास्यमुवर्णम् 'बरकणगणिघसेइ वा बरकनकनिघर्ष इति वा, दरकनकस्य जात्यसुवर्णस्य य: कपपट्ट के निवर्षः स वरकनकनिधर्षः 'सुवण्णानिप्पिएइ वा' सुवर्णशिलिपकमिति वा अपार्थों लोकतोऽवसेयः 'वरपुरिसवसणेइ वा परपुरुपवसनमिति वा, वरवा जला हल्दी का टुकडा पीला होता है हालिद गुलिघाइ वा हरिद्रा. की गोली पीली होती है 'हरियालियाइ वा जैसा हरितालीला होता है 'हरितालियाभेएइ वा हरितालका खण्डपीला होता है 'हरितालिया गुलियाइ हा' हरितालकी गोली पीली होती है 'चिउरे वा' चिकुर गगद्रव्यविशेष जैसा पीला होता है 'चिकुरंगरागेइ वा' चिकृराङ्गरोग जैसा पीला होता है 'चिकुर के मंयोग से जो वस्त्रादि में राग होता है उसका नाम चिकुरागराग है 'वरकणगेह वा' जैसा श्रेष्ठ सुवर्ण पीला होता है 'वरकणगणिघ से वा' श्रेष्ट सुवर्ण की कसौटी पर की गइ घर्पणरेखा जैसी पीली होती है 'सुवणसिप्पिएइ वा' सुवर्ण शिल्पिक जैसा पीला होता है इसका अर्थ लोक से जानने योग्य है 'वर पुरिसवसणेइ वा वर पुरुप-वासुदेव-कृष्ण का वस्त्र जमा पीला होता पीली 3य छे. 'हालिदभेपइवा' हा १ २वी पीणा डाय छे. 'हालिगुहियाइवा' हनी गाजी व पीजी साय छे. 'हरियालियाइवा' हरिता २३ पीमा डाय छ 'हरितालियाभेएइवा' हरितासन गरेको पाणी डाय छे. 'हरितालिया गुलियाइवा' रितालिनी की २वी पीजी २१य छे 'चिरेइवा' थि६२ मे त पाणु द्रव्य विशेष पाहाय छे, 'चिकुरंगरागेइवा' विरामनार व पीणा डाय छे विना मेजवाथा वन विगैरेमा २ थाय छ तेतुं नम शिंग छे. 'वरकणगेइवा' श्रेष्ठ से पीय छ, 'वररुणाणिघसेइवा' उत्तम सेनान सेटि ५२ ४२१.भा मादासाट २३ पीणा हाय छे. 'सुवण्णसिप्पिएइवा' सानानु शिलि५४ पीडाय छे. 'वर पुरिसवसणेइवा' १२५३५-पासुहेव प्यनु ५२७ २
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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