SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 884
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८५८ जीवा मिगमसूत्रे ) ताम्रपत्रादिषु सामग्रीविशेषेण घोलितं मषी भवति, 'मसीगुलिया वा' मषीगुटिकेतिक घोलितकज्जलगुटिका 'गवळेवा' गवलकमिति वा गवलं महिपस्य शृङ्गम् तदपि चोपरितनत्वग्भागापसारणेन द्रष्टव्यं तत्रैव विशिष्टस्य काळिम्नः संभवादिति, 'गवलगुलियाइ वा गवलगुटिकेति वा तस्यैव महिपस्य निविडतरसारनिवर्त्तिता गुटिका गलगुटिका 'ममरेड़ वा' भ्रमर इति वा, 'भमरावलिया वा' भ्रमरावलिकेति वा, भ्रमरावलिका भ्रमरपङ्क्तिः: 'ममरपतंगसारे ना' भ्रमरपतङ्गसार इति वा, भ्रमरपक्षान्तर्गतो विशिष्टकालिमोपचितः प्रदेशः 'जंबू फळे वा' जम्बूफलमिति वा तत्र जम्बूफलं 'जामून' इति प्रसिद्धम्, 'अदारि वा' आर्द्रारिष्टः कोमळकाकः, 'परपुढे वा' परपुष्ट इति वा परपुष्टः ताम्रपानादि में एकट्ठा करके जब उसे किमी सामग्री के साथ घोल दिया जाता है तब यह विशेष रूप से काला होकर मधी काली स्याही के रूप में आजाता है इसे ही मपी कही गई है हनी लिये यहां काजल को दृष्टान्त कोटि में स्वागया है 'मी गुलिया वा' जैसी काली मपी की गुटिका होती है 'गवल' जैमा काला भैसका होता है-भैंस के सींग की उपर की खाल निकाल देने पर वह विशेष कृष्णवर्ण का होता है -- इसीलिए इसे यहां दृष्टान्तकोटि में रखा गया है 'गयलगुलियाड़ वा' जैसी काली गवलगुटिका शेती है यह गलगुटिका महिष के शृह के निविडतर सार भाग से निर्वर्त्तित होने से विशेष कालिमा वाली होती है 'मरेहना' 'जैला फाला भ्रमर होता है । 'भमरावलियाइ वा' जैसी काली भ्रमरपंक्ति होती है 'भ्रमरपतगसारे वा' जैसा भ्रमर के पक्ष के अन्तर्गत प्रदेश विशिष्टकालियावाला होता है 'जंबूफले वा' जैमा काला जामृन का फल होता है 'अदारिति वा' जैसा काला સાથે મેળવી દેવામાં આવે છે, ત્યારે તે વિશેષ પ્રકારે કાળુ ખીને ચમકે છે. અને તેને પી કહે છે. તે ખતાવવા ઠ્ઠી કાજળને દૃષ્ટાંત કેટમાં લીધેલ 'छे 'मखीगु लाइवा' भसीनी गुटिश-गोणी नेवी आणी हाय है. 'गवल" ભેંસનું સી ગ જેવુ' કાળુ હાય છે ભેસના સીગડા ઉપરની ખાલ કાઢી લેવાથી એ વિશેષ પ્રકારશ્રી કાળા દેખાય છે તેથીજ તેને અહીં દૃષ્ટાંત તરીકે ગ્રહણ 'गवलगुलियाइवा' नेवी आणी गवसगुटिङ होय छे. या गवसशुटिम ભેંસના મીગડાના એકદમ સારભાગ રૂપ હાવાથી વિશેષ કાળાશ વાળી હાય छे 'भमरे इवा' वे हो लभरो होय छे, 'भमरावलियाइवा' भभरायोनी पति देवी श्रेणी होय हे 'भमरपत्तगयसारेइ वा' लभरामोनी यांनी २ने। लाग प्रेम विशेष अहारनी अणाश वाणी सोय ', 'ज'बूफलेइवा' 'जुडा नेवा क्षणा होय छे. 'अदारिदेवा' अगअनु' भ्यु नेवु अणु होय छे, परपुट्ठेवा' *
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy