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________________ प्रमेयधोलिका टीका ५.३ ३.३ सू.५६ छीपसमुद्रनिरूपणम् इति तैलविशेषणम्, तैलापूपस्येव यत्संस्थानं तेन संस्थित इति तेलापूपसंस्थान संस्थितः । पुनश्च 'वट्टे' वृत्तः, कीदृशो वृत्तस्तवाह-रह चक्कबालसंठाण संठिए' रथचक्रवाळसंस्थानसंस्थितः, स्थस्य रथाङ्गस्य चक्रस्व अवयवे समुदागे. पचारात् चक्रवालं मण्डलं तस्येत्र यन संस्थानं तेन संस्थित इति स्थचक्रवाल संस्थानसंस्थितः । पुनरपि-'चट्टे" वृत्तः कीदृशः ? तबाह-पुक्खरकणियासंठाण संठिए' पुष्करकर्णिका संस्थानसंस्थितः, तत्र पुष्कर कणिका पद्मवीजकोशस्तस शो वृत्तः । पुनश्च 'वटे' वृत्तः कीदृश इत्याह-पडि पुग्नचंदसंठाणसंठिए' परिपूर्णचन्द्रसंस्थानसंस्थितः परिपूर्णचन्द्रः-पूर्णिमाचन्द्रस्तद्ववृत्तः। एतेन जम्बू द्वीपस्य संस्थानं कथितमिति । सम्मति-जम्बूद्वीपस्याऽऽ सामादिपरिमागमाह'एक्क' इत्यादि, 'एक जोयणसयसहस्सं आयामविकावं भेणे' एक योजनशत'वटूटे रहचकवालसंठाणसं ठए' मुत्रकार ने यह दूसरा भी सूत्रपाट कहा है अर्थात् वह जम्बूद्वीप ऐसा गोल है, जैसी कि रथ के पहिये की गोलाई होती है रथ से वहाँ अवयष में समुदाय के उपचार से रथकाअङ्ग-चक्र-पहिया-लिया गया है 'बटूटे पुक्खरणियासंठाणसंठिए' यह जम्बूद्वीप ऐसा गोल है की जैसी पुष्कर कमल की कणिका होती है। गोलोई प्रकट करने के लिये यह तृतीय उपमान पद है अथवा 'टूटे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए' चतुर्थ उपमान परिपूर्ण चंदमंडल है। जैसा परिपूर्ण- पूर्णिमा-का चंद्रमंडल अपनी गोलाई में उपस्थित रहता है, उमी प्रकार की गोलाई वाला यह जम्बूद्वीप है इस धन से जम्बू. द्वीप का संस्थान प्रकट किया गया है । अथ इसका आयामादि प्रमाण प्रकट करते है 'एक्कं जोयणसयसहस्सं आयामविखंभेणं तिणि जोयणसयसहस्साई लोलस घ सहस्प्लाई दोणि य सत्ताबीसे जोयणसंठिए' अर्थात् स दीय मेव गाणछे २६ मा २थना यानी હોય છે. રથથી સમુદાયના ઉપચારથી રથનું અંગ ચક્ર પૈડું ગ્રહણ કરેલ છે 'वटे पक्खरकग्णिया सठाणस ठिए' मा 'दीय सेवा गौण छ वा ગોળાઈ પુષ્કર કમળની કળિની હોય છે ગળાઈ બતાવવા માટે આ ત્રીજુ 6५मानपहेस छ अथवा 'वट्टे पुण्णचं दस ठाण स ठि।'युगे पनि પૂર્ણિમાનું ચંદ્ર મંડળ ગોળાકારમાં વ્યવસ્થિત હોય છે એ જ પ્રમાણેનો ગાળ આકાર વાળે આ જંબુદ્વીપ છે. આ રીતે પરિપૂર્ણ ચંદ્રનું આ ચે શું ઉપમાન પદ કહેલ છે. આ કથનથી જબૂદ્વીપનું સંરથાન બતાવેલ છે. હવે તેના मायाम विरेनु प्रभा मतावे छे. 'एक जोयणमयमास्स आय मविक्खंभेण तिणि जोयणसयसहस्साई सोलस य सहस्साई दोणिय सतावीसे लोयणसए
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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