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________________ ७९८ जीवामिगमसूत्रे क्षुल्लक:, तथाहि सर्वे लवणादयः समुद्राः सर्वे च धातकीखण्डादयो द्वीपाः जम्बू द्वीपादारभ्य द्विगुणद्विगुणायाम विष्कम्भपरिधयस्ततः शेषद्वीपसमुद्रापेक्षया जम्बूद्वीपो लघुरिति । एतेन सामान्यतः परिमाणं कथितम् । विशेषवस्तु आयामादिगतं परिमाणमग्रे वक्ष्यति । तथा-'वट्टे' वृत्तः, वृत्तोऽयं जम्बूद्वीपः वृत्तत्वं तु बलयत्रदन्तः शुषिरयुक्तमपि भवतीत्यतोऽस्य वृत्तत्वं संस्थानमाश्रित्य प्रदर्शयति'तेल्ला पू५०' इत्यादि 'वेलापूपसंठाणसंठिए' 'तैलापूपसंस्थानसंस्थितः तैलेन पक्चोऽपूपस्तैलापूरः तैलेन हि पक्त्रोऽपूपः प्रायः परिपूर्णवृत्तो भवति न घृतपक्व समस्त द्वीप और समुद्रों की अपेक्षा लघु है। क्योंकि शेष द्वीपों और समुद्रो का लवणोदक आदि समुद्रों का एवं धातकी खण्ड आदि द्विपों का जो आयामविष्कम्भ एवं परिधि का प्रमाण है वह जम्बूदीप के आयाम और विष्कम्भ से तथा उसकी परिधि से दुनार होता गया है। इससे कारने जम्बूद्वीपका प्रमाण कहा है। यह सब आयाम आदिका परिमाण वे स्वयं आगे प्रकट करनेवाले हैं तथा 'वट्टे' यह जम्बूद्रीप आकार में गोल है । गोल तो वलय की तरह धीच में खाली भागवाला हो सकता है। अतः इसकी गोलाई संस्थान को लेकर कहते है । यह 'यट्टे तेल्लापुराणसंठिए' तेल में पकाये गये मालपुआ के जैसा वृत्त है तेल में पकाया हुआ पूआ अपने आकार प्रकार में ठीक रूप से परिपूर्ण रहता है घृत में पक्व पुमा ऐसा नहीं होता है वह कही कमती और कही बढती हो जाता है इसके वृत्त को पुनः प्रकट करने के लिये આ જ ખૂદ્વીપ સઘળા દ્વીપ સમુદ્રોની અપેક્ષાથી નાના છે. કેમકે ખીજા દ્વીપે। અને સમુદ્રોલવણેાદક વિગેરે સમુદ્રોનુ તથા ધાતકીખડ વિગેરે દ્વીપેાના આયામ વિષ્ક`ભ અને પરિધિનું પ્રમાણુ છે, તે જમૂદ્રીપના આયામ અને વિષ્ણુસથી તથા તેની પરિધિથી ખમણુ ખમણું થતુ જાય છે. તેથી સૂત્રકારે જ ખૂદ્રીપનું પ્રમાણુ નાનુ કહેલ છે. અને આયામ વિગેરેનું પરિમાણુ તે पोतेन भागण प्रगट ४२शे तथा 'वट्टे' मा ४ यूद्वीप सारथी गोज छे. વલય ખàાયાની માફક વચમા ખાલીલ ગવાળા પણુ ગોળાકાર થઈ શકે છે. તેથી तेनी गोणाई संस्थानने सईने उडे छे. या गोण आहार 'वट्टे वेल्लापुयस ठाण स ंठिए' तेसभां मनाववामां आवे युमा भासमाना वो गोज छे. तेसमां પકવવામાં આવેલ પુમા પેાતાના આકાર પ્રકારથી ખરેખર રૂપે પરિપૂર્ણ રહે છે. ધીમાં મનાવવામાં આવેલ પૂઆ એવા ગાળાકારવાળા હાતા નથી. તે કયાંક એાછા વત્તા ગેળ હાય છે તેનેા ગાળાકાર અતાવવા ફરીથી આ માણેના ખીજે પશુ સૂત્રપાઠ इस छे. 'वटूदे रद्दचक्कवालस ठाण
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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