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________________ ७९० जीवाभिगमसूत्र ज्योतिष्कदेवास्तिर्यग्लोगे इति तिर्यग् लोकमस्तावाद् द्वीपसमुद्रवक्तव्यतामाह-'कहिणं भंते ! दीव समुदा' इत्यादि। मूलम्-कहि णं भंते ! दीवसमुद्दा पन्नत्ता, केवइया णं भंते ! दीवससुद्दा पन्नत्ता, के महालयाणं भंते ! दीवसमुद्दा एजणत्ता, कि सठिया णं भते! दीवसमुद्दा पन्नत्ता, किमा गार भावपडोयाराणं भंते! दीवसमुद्दा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवाइया दीवा लवणादिया समुद्दा संठाणतो एकविहविहाणा वित्थारओ अणेगविहविहाणा दुगुणा दुगुणपडुप्पाएमाणा२ पवित्थरमाणा२ ओभालमाणवीचिया बहुउप्पलपउम कुसुदलिण सुभगसोगंधिक पोंडरीय महापोंडरीय सत्तपत्त पफुल्लकेसरोबचिया पत्तेयं पत्तेयं पउसवरवेइया परिक्खित्ता, पत्तेयं पत्तेयं वणसंढपरिक्खित्ता, अस्सि तिरियलोए असंखेना दीवलमुद्दा सयंभूरमणपज्जवसाणा पण्णत्ता समणाउसो ? । तत्थ णं अयं जंबुद्दीने णाम दीवे दीवसमुदाणं अभितरिए सबखड्डाए वह, तेल्लापूयसंठाणसंठिए बहे. रहचकवालसंठाणसठिए बढे, पुक्खरकणियासंठाणसंठिए बढे, पडिपुन्नचंदसंठाणसंठिए, एकंजोयणसयसहस्सं आयामविश्वंभेणं तिपिणजोयणसयसहस्साई सोलससयसहस्साई दोणिय सत्तावीसे जोयणलए तिपिणचकोसे अट्ठावीसं च धणुमयं तेरस अंगुलाई अहंगुलकं च किंचि विस्ताहियं परिविखेवेणं पण्णत्ते । से णं पाए जगतीए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । साणं जगती यहां पर भी कह लेना चाहिये 'चंदस्त वि एवं चेव' सूर्य के सम्बन्ध में जैसा यह परिषदा आदिका कथन किया गया है ऐसा ही परीषदा आदि का कथन चन्द्र के सम्पब में भी कर लेना चाहिये ॥५०॥ ही . 'चंदस्स वि एव चेव' सूर्य ना समन्धमा परिहा विरेनु પ્રમાણેનું કથન ત્યાં કરવામાં આવેલ છે. એ જ પ્રમાણેનું કથન અહીંયાં ચંદ્રના સંબંધમાં પણ કરી લેવું જોઈએ. સૂ. ૫૦ |
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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