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________________ जीवाभिगमने विद्यमानस्य घनोदधेः संस्थान दर्शयितुमाह-सकरप्पभाए' 'इत्यादि, 'सकरप्पभाए पुढबीए' शर्करामभायाः पृथिव्याः 'घणोदही किं संस्थितः पक्षप्त:-कथित इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'झल्लरी संठिए पन्नत्ते' शर्करोपभायाः घनोदधिः झल्लरी संस्थानसंस्थित एक प्रज्ञप्तः विस्तीर्णवलयाकारत्वादेवेति । एवं जाव ओवासंतरे' एवं यावदवकाशान्तरम्, यावत्पदेन घनवात तनुवातयोः संग्रहः तथा च शर्करामभाऽधोविद्यमानधनवाततनुवाता वकाशान्तरमेतत् सर्व झल्लरी संस्थितमेवेति ज्ञेयम् । 'जहा सकरप्पमाए इत्तम्बया कि यह भी विस्तीर्ण वलय के जैसी-है 'सकरभाए पुढवीए घणी. दही किं संठिया' हे भदन्त ! शर्करा प्रभा पृथिवी के अधोभाग में जो घनोदधिवात बलय है वह कैसे आकार वाला है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं गोयमा 'हे गौतम ! 'झल्लरी संठिए पन्नत्त शर्कराप्रमा पृथिवी के अधो भाग में अवस्थित जो घनोदधि वातवलय है वह भी झल्लरी के जैसे ही आकार वाला है। क्योंकि इसका जो आकार है वह विस्तीर्ण वलय के जैसा ही है। 'एवं जाव ओवासंतरे' इसी तरह से यावत् अवकाशान्तर तक कथन जानना चाहिये जैसे-शर्करा प्रभा गत जो घनोदधि वातवलय है-सो उस घनोदधि वातवलय के नीचे वर्तमान जो घनवांत बलय है वह, और इस घनवात वलय के नीचे वर्तमान जो तनुवान वलय है वह एवं इस वातवलय के नीचे वर्तमान जो अवकाशान्तर है वह सष झल्लरी के जैसे ही आकार वाले हैं ऐसा जानना चाहिये 'जहा सकरप्यभार वत्तम्बया एवं जाव अहे असरना 2411२ २११ मा२पाणी ४डी छे. 'सक्करप्पभार पुढवीए घणोदही कि संठिया' ७ सगवन् २४२५मा पृथ्वीना नीयन लारामा २२ घनधि વાતવલય છે. તે કેવા આકાર વાળે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે 'गोयमा !' 3 गौतमो 'झलरी संठिए पन्नत्ते' २४२प्रमा पृथ्वीनी नायना ભાગમાં રહેલ જે ઘનેદધિ વાતવલય છે, તે પણ ઝાલરના જેવાજ આકાર पाणी छे. भ. तो मा२ विस्तृत मायाना वा छे. 'एवं जाव ओषा संतरे' ये ४ प्रमाणे यावत् म न्त २ सुधिनु थन सभा नभई શર્કરામભામાં રહેલ જે ઘોદધિ વાતલય છે, તે ઘને દધિ વાત વલયની નીચે રહેલ જે ઘનવાત વલય છે, તે અને એ ઘનવાત વલયની નીચે રહેલ જે તનુવાત વલય છે, તે અને એ તનુવાત વલયની નીચે રહેલ જે અવકાશાસ્તર - છે. તે બધા ઝાલરના આકાર જેવાજ ગોળ આકારવાળા છે. તેમ સમજવું.
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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