SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 636
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ६१२ जीवामिगम यासांतास्तथा जराजन्य शरीरके शवैम्प्यरहिता इत्यर्थः, 'वंगदुन्धण्ण वाही दो. भग्गसोगमुकाओ' व्यंगदुर्वर्ण व्याधिदौर्माग्य शोकमुक्ताः, तत्र विरदमङ्ग व्यङ्गम् विकारवानवयवः दुर्वर्णो विकृतशरीरच्छविः, उपाधिः-ज्वरादिः दौमाग्यं शोवश्व एतैर्मुक्ता रहिता स्तास्तथा, तेषां व्यगादेः स्वप्नेप्यसंमवात् 'उच्चत्तेणय नराण थोवूगमसियाओ' उच्चत्वेन च नराणां स्तोकेनोच्छ्रिताः, उच्चरवेन च नराणां स्तोकमनं यथा स्यात्तथा उच्छ्तिा किञ्चि-यूनाष्ट धनुः शतोन्छ्या इत्यर्थः 'सभाव सिंगारागारचारुवेसा' स्वभाव जन्य एव शृङ्गारः स्वभावशृङ्गारः प्रमाणो. पेत यथावस्थितसुन्दर शरीरावयवजन्यसौन्दर्यवान् नतु वाह्य रस्त्रभृपणादि जन्यः, प्रासाद २६, गिरि-वर-श्रेष्ठ पर्वत २७, दर्पण २८, ललित गज श्रेष्ठ २९, वृषभ ३०, सिंह ३१, एवं चमर ३२, इन सामुद्रिक शास्त्र प्रसिद्ध श्रेष्ठ बत्तीस लक्षणों को ये धारण करती है 'हंससरिसगहओ' हंस के जैसी इनकी गति-चाल होती है 'कोइलमधुर गिरसुस्तराओं' कोयल की मधुरवाणी के जैसा इनका सुन्दर मधुर स्वर होता है-'सबस्स अणुन. याओ ववगयलिपलिया, वंगदुवण वाही दोभग्गसोगमुक्कामो ये बहुत ही अनुपम सुन्दर होती हैं ये सथके लिये अनुनयविनयवाली होती है इनके शरीर में किंचित् भी शैथिल्य समुद्भव चर्म विकार नहीं होता अर्थात् शरीर में इनके खाल का कुकर-संकोच जाना रूप विकार नहीं होता। बाल इनके सफेद नहीं होते हैं-इन के अंग विकृत नहीं होते हैं अर्थात् हीनाधिक होने रूप विकार से रहित होते हैं-शरीर की छवि में किसी भी प्रकार की विकृति नहीं आती है व्याधि से ज्दरादि रोग से ये सदा मुक्त रहती हैं दुर्भाग्य का इनके लेशमात्र भी नहीं होता है शोक का इनके नामो निशान भी नहीं होता है अर्थात् ये सदा हर्षित પ્રાસાદ ૨૬, ગિરિવર શ્રેષ્ઠ પર્વત ૨૭, દર્પણ ૨૮, લલિતગજ-શ્રેષ્ઠ હાથી ૨૯, વૃષભ ૩૦, સિંહ ૩૧, અને ચમાર ૩૨, આ સામુદ્રિક શાસ્ત્રમાં પ્રસિદ્ધ શ્રેષ્ઠ सेवा मत्रीसे क्षयाने तेथे धारण २ छ. 'हस सरिसगइओ' सना रेवी तानी गति-यास डाय छे. 'कोइल मधुरगिरसुस्सराओ' यानी भधु२ quelan । सुर भने मधु२ तमानी २१२-४४ाय छे. 'सव्वस्म अणुनयाओ ववगयवलिपलिया, वंग दुबण वाही दोभग्गसोगमुकाओ' તેઓ ઘણીજ અનુપમ સુ દર હોય છે. તેઓ બધા પ્રત્યે વિનયવાળી હોય છે. તેઓના શરીરમાં જરાય શિથિલતા યુકત ચર્મવિકારો હોતા નથી. અર્થાત્ તેમના શરીરમાં ચામડી સંકેચાઈ જવારૂપ વિકાર હેત નથી. તેઓના વાળ સફેદ હોતા નથી, તેઓના અંગ વિકૃત હોતા નથી. અર્થાત્ જૂનાધિક હેવારૂપ
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy