SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेययोतिका टीका प्र.३ सू.४ खरकाण्डादि घनोदध्यादेहिल्यम् ३१ एवं घनवातवदेव तनुवातोऽपि धनवातस्याधोदेशेऽसंख्येषयोजनसहस्रबाहल्येन विद्यते तथा-तनुवातस्यापि अधोदेशेऽप्रकाशान्तरमसंख्येय योजन बाहल्येन प्रज्ञप्तम् 'जहा सक्करपभा पुढवीए एवं जाव अहे सत्तमाएं यथा शरामभाया एवमधः सप्तमी पृथिवी पर्यन्तं घरोदधि घनवात तनुरातावकाशान्तराणां. तर दधोदेशे तेन तेन बाहल्येन युक्त ज्ञातव्यमिति ॥४॥ . मूलम् -इमीले णं भंते ! रयणप्पाए पुढवीए असीइ उत्तर जोयणलयसहस्सा बाहल्लाए खेत्तच्छे एणं छिजमाणीए अस्थि हैं एवं तणुवाए वि ओवासंतरे वि' घनबात की तरह तनुवात भी जानना चाहिये और अवकाशान्तर भी जानना चाहिये इसी तरह घनवात के अधोभाग में यह तनुवाल है और वह असंख्यात हजार योजन की मोटाई वाला है लशा-तनुवात के अधोभाग में अबकाशान्तर है और यह भी असंख्यात योजन की मोटाई वाला है 'जहा सकरप्पभा पुढवीए एवं जाय अहे सत्तमाए' जिप्त प्रकार से शर्कग प्रभा पृथिवी के घनोदधि आदि की मोटाई और अवकाशान्तर की मोटाई कही गई है उसी प्रकार रखे यावत्-अधः सप्तमी पृथिवी तक की पृथिवियों के घनोदधि आदि की और अलाशान्तों की मोटाई जाननी चाहिये घनोदधि अपनी २, पृथिवियों के अधोभाग में है धनवात घनोदधि के अधोभाग में हैं और तनुबान धनवाल के अधोभाग में हैं अवकाशान्तर तनुवान के अधोभाग में हैं। ॥१०४॥ 'एव तणुवाएवि ओवासंतरे वि' धनवात प्रभारी तनुपात ५ छे तेम समજવું અને અવકાશાતર પણ એજ પ્રમાણે એટલે કે ઘનવાતના કથન પ્રમાણે " छ, त सभा આ રીતે ઘનવાતની નીચેના ભાગમાં આ તનુવાત છે, અને આ અસંખ્યાત હજાર એજનના વિસ્તારવાળે છે. તથા તનુવાતની નીચેના ભાગમાં भquन्तर छ, भन त ५ असvयात येना विस्तारवाणु छ. 'जहा सक्करप्पभा पुढवीए एवं जाव अहे सत्तमाए' हे प्रमाणे शरामा सीना ઘને દધિ વિગેરે વિસ્તાર અને અવકાશાન્તરને વિરતાર કહેલ છે. એજ પ્રમાણે યાવત્ અધઃસપ્તમી પૃથ્વી સુધીની પૃથ્વીના ઘનોદધિ વિગેરેનો અને અવકાશાતને વિસ્તાર સમજીલે. ઘોદધિ પિતાપિતાની પ્ર.ના અધભાગમાં છે, ઘનવાત, ઘોદધિની નીચેના ભાગમાં છે. અને તનવાત ઘનવાત ની નીચેના ભાગ માં છે. અને અવકાશાસ્તર તનુવાતની નીચેના ભાગમાં છે. સૂ. ૪
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy