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________________ ३० जीवाभिगम सूत्रे भाएणं भंते' इत्यादि, 'सक्करप्पभाषणं भंते ! पुढवीए' शर्कराममायाः खलु भइन् ! पृथिव्याः ' वगोदही केवइयं वाइल्लेणं पन्नत्ते' घनोदधिः कियान बाहल्येन प्रज्ञप्त इति प्रश्नः, भगवानाह - ' गोचमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'वीसं जोयणसहस्सा ई' विंशतियजनसहस्राणि 'वाइल्लेणं पण्णत्ते' बाहरयेन मज्ञप्तो घनोदधिरिति । 'सक्करप्पभाषणं भंते! पुढवीए' शर्कराप्रभायाः खलु भदन्त । पृथिव्याः 'घनवाते केवइयं बाहल्ले गं पन्नत्ते' घनवातः क्रियान् वाइल्येन मज्ञप्तः, इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'असंखेज्जाई जोयण सहस्लाई' असंख्येयानियोजनसहस्राणि 'बाहल्लेणं पन्नत्ते' बाहल्येन प्रज्ञप्तः, शर्कराप्रभा सम्बन्धि घनवातोऽसंख्येययोजन सहस्रपरिमित बाल्यतो घणोदधे (धोदेशे विद्यते इत्यर्थः । ' एवं तणुवाए वि ओवासंतरे वि' भाणं ते! पुढवीए' हे भदन्त ! शर्कराप्रभा पृथिवी का जो 'घणोदही' घनोदधि है वह 'केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते' कितनी मोटाई वाला कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोपमा ! बीस जोपण सहस्साई बाहल्लेणं पन्नत्ते' हे गौतम! शर्करा प्रभा पृथिवी का जो घनो. दधि है वह 'बीसं जोयण सहस्ताई' बीस हजार योजन की मोटाई बाला कहा गया है । 'सक्काप्पभाषणं भंते! पुढबीए' हे भदन्त ! शर्करा प्रभा पृथिवी का जो 'घन वाते' घनवास है वह 'वयं बाहल्लेणं पनते' कितनी मोटाई वाला कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयना ! 'असंखेजाई जोयणसहरुलाई बाहल्लेणं पन्नत्ते' हे गौतम! शर्करा प्रभा पृथिवी का जो घनवाल है वह असंख्यात हजार योजन की मोटाई वाला कहा गया है यह घनवात घनोदधि के नीचे के भाग में 'करपभाए णं अंते! पुढवीए' हे भगवन् शर्कराप्रमा पृथ्वीना ने 'घणोदही' धनादधि छे, ते 'के वइयं बाहल्लेणं पन्नत्ते' डेटा विस्तार वाणी उद्यो है? भा प्रश्नमा उत्तरमा प्रभु गौतम स्वामीने हे 'गोयमा' वीसं जोयणसहरसाई बाहल्लेणं पन्नत्ते' हे गौतम! शरायला पृथ्वीने ने धनविधि छे, ते वीस डेन्जर ચેાજનના વિસ્તાર–જાડાઇ વાળા કહેલ છે. ફરીથી ગૌતમસ્વામી પ્રભુને પૂછે છે } 'सक्कर पभाए णं भंये ! पुदवीए' हे लगवान् श२प्रला पृथ्वीन े 'घनवायें' धनत्रात छे. ते 'केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते' ऐसा विस्तारना ह्यो है ? भा अश्नना उत्तरभां अलु ! छे! 'गोयमा ! असंखेज्जाई जोयणम्रइस्साई बाइल्लेणं पन्नत्ते' हे गौतम! शरायला पृथ्वीना ने धनवात हे, ते असंख्यात डुलर ચૈાજનના વિસ્તારવાળા કહ્યો છે. આ ઘનવાત, ઘનેાધિની નીચેના ભાગમાં છે,
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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