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________________ जीयामिगमसूत्र अथवा शत पर्व इक्षु स्तथा चेक्ष कृपय इव 'चालेमाणा चालेमाणा अंतो हो' अन्तरन्तः शरीरस्य मध्यभागेन संचरन्त संचरन्त एकम्य शरीरदेशेऽनुमविशन्तस्ते मारकाः 'वेयणं उदीरयंति उज्जलं जाब दुरहियास' वेदना मुदीरयन्ति उज्वला यावत्-विपुलां प्रगाढां कर्कश स्टक एमपी कण्डां विटुगं तीनां दुर्गा दरधिसमा. मिति, एतादृशी वेदनामुहीरयनि-यात पष्ठ सप्तम पृथिवी नारका इति । सम्पति-क्षेत्रस्य भावनांवेदना प्रतिपादयनि-'श्रीसे णं इत्यादि, 'इमी से णं भंते ।' रयणप्पभाए पुढबीए' एल बल भदन्त ! न्नममायां पृथिव्याम् 'नेरइया' नरयिकाः कि सीयं देणं ति किगीतां वेद वेदयन्ति अथवा 'उसिण वेरणं वेदेति' उष्ण वेदना बेदयति मात्रा-सीय उमिण वेयणं वेदेति' शीतोष्णवेदना वेदयन्तीति जना अगार-गोगमा' इत्यादि, 'गोयमा रे गौतम ! 'णो सीयं वेरणं वेदेति' नो शीशरा वेदनां वेदयन्ति, किन्तु 'उसिन पर्ववाली इक्षु के किडेकी चाटेमणा भीतरी भीतर सन. सनाहट करते हुए घुल जाते है इससे वे 'वेषण उदीरपंति' उज्वल आदि पूर्वोक्त विशेषणों वाली वेदना को उसे उत्पन्न करते हैं यही पात 'उज्जलं जाव दुरहियासं' हम मृत्रपट द्वारा प्रकट की गई है। अय सूत्रकार क्षेत्र स्वभावज वेदना का कथन करते हैं । 'इसीसे णं भंते ! रयणप्रभाए पुनीए नेरइया' हे भदन्त । इम रत्नप्रभा पृथिवी के नैरपिक 'शि की वेयणं वेदें नि उसिणवेयणं वेदेति' क्या शीतवेदना को भोगते है ? या उपनवेदना को भोगते हैं। या 'सीय उसिणवेयणं वेति' शीतोष्ण वेदना को भोगते हैं इस प्रकार के गौतम के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् कहते हैं 'गोयमा! जो सीयं वेचणं वेदेति' हे गौतम ! दे ना जीव शीनवेदना का वेदन छे. तेथी तमा 'वेयण उदीरयति' Gara (मेरे पास विशेषणवाणी वेदना २ जत्पन्न ४रावे छे. मे पात 'उज्जलं जाव दुरहियास' मा सूत्र દ્વારા પ્રગટ કરવામાં આવી છે. वे सूत्रा२ क्षेत्र मावाणी वनाना समयमा थन ४२ छे. 'इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया के सामन् सा रत्नमा पृथ्वीना नै । 'किं सीयवेयणं वेदेति उसिणवेयण वेदेति" शुशीत वहनातुं वहन ४२ छ, Bहना नाग १ मथ4। 'सीय उसिणवेयणं वेदेति' ताण वेदनान सागव छ । गौतमकाभाना 20 प्रश्न उत्तर मापता प्रभु / छ 'गोयमा ! पो मीयं वेयणं वेदेति' गौतम ! ना२३। शीत वहनानु' वहन ४२ता नयाः
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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