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________________ २६४ जीवामिगमस णीय' अवधिज्ञानिनश्च 'जे अन्नाणी' येत्यज्ञानिलः, अत्थे गया दुअन्नाणी' सन्त्ये. कके द्वन्यज्ञानिनः 'अत्थे गइया ति अन्नानी' सन्त्येकके व्यज्ञानिना 'जे दुअन्नाणी ते नियमा मइ अन्नाणी य सुय अन्नाणीय' तत्र ये हृयज्ञानिनस्ते नियमतो मत्य ज्ञानिनः श्रुनाज्ञानिनश्च ये अमंजिपञ्चन्द्रिये भ्य उत्पधन्ते ते अपर्याप्तावस्थायां द्वय ज्ञानिन: शेप काले तु तेषामपि यज्ञानिता 'जे ति अन्नाणी विभंगनाणी वि' ये त यज्ञानिनः ते निएमा मरअन्नाणी सुय अन्नाणी ते नियमो मत्यज्ञानोलः श्रुनाज्ञानिनो विभङ्ग मानिने ऽपि भवन्तीति । सेसा पं वाले होते हैं-'तं जहा' जैसे-'भिपिशवोहियनाणी, सुचनाणी, ओहि. नाणी' मतिज्ञान वाले होते . शुनज्ञाल बाले होते हैं और अवधि ज्ञान वाले होते है। 'जेनाणी' और जो ज्ञ.नी होते हैं वे 'अत्थेग. इया दुअन्नाण्णी ' जितने को दो अज्ञाल वाले होते है 'अत्थेगड्या ति अन्नाणी' और कितनेक तील प्रज्ञान झाले होते हैं। 'जे दुअन्नाणी' जो नारक दो अज्ञान वाले होते है-के नियमा मह अन्नाणी य सुय अन्नाणी य' नियम ले एक मतिअज्ञानवाले और दूसरे श्रुत अज्ञानबोले होते हैं तथा-'जे ति अन्नाणी ले नियमा-सह अल्लाणी, सुय अन्नाणी विभंगानाणी दिजो लारकी तीन अज्ञान वाले होते हैं वे नियम से मति अज्ञान दाले होते हैं, शुल अजाल क्षाले होते हैं, और विभंज्ञान वाले होते हैं । जो जीव असंजी पञ्चेन्द्रियों में से आकर के उम्पन्न होते हैं ये अपर्याप्तावस्था में ही दो अज्ञान वाले होते है और पीछे के समय में नो वे भी तीन अज्ञान वाले हो जाते हैं । इसीलिये कितनेक नारकी दो अज्ञान बाले होते हैं ऐला कहा गया है । 'सेसाण णियोहिय नाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी' भतिज्ञान वा हाय छे. श्रुतज्ञान वाणा डाय छ, भने अवधिज्ञानी वा हाय छ 'जे अन्नाणी' भने रेया अज्ञानी डाय छ, तेसा नियमथी 'अत्थे गइयो नि अन्नाणी' भने मात्र अज्ञानवा डाय छे, 'जे दु अण्णाणी' २ ना मे अजान वाणा हाय छ, त। 'नियमा मइ अन्नाणी य सुय अन्नाणीय' नियमथी २१ मति मज ना सने श्रुत अज्ञान पास छे. 'जे ति अन्नाणी ते नियमा मइ अन्नाणी सय अण्णाणी विभग नाणी' २ ना२४ीयो ३ अन डाय छे. तेया नियमयी मति अज्ञान વાળા હોય છે, શ્રત અન્નાન વાળા હોય છે અને વિર્ભાગજ્ઞાન વાળા હોય છે. જે અસંગી પંચેન્દ્રિમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે, તેઓ અપર્યાપ્ત અવસ્થામાં જ બે અજ્ઞાન વાળા હોય છે. અને પછીના સમયમાં તે તેને પણ ત્રણ અજ્ઞાનવાળા થઈ જાય છે. તેથી જ કેટલાક નારદીયો બે અજ્ઞાનવાળા હોય છે. તેમ કહેવામાં આવ્યું છે.
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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