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________________ - - - - २२४ जीवामिगम अवहियासिया' कियता कालेन अप हताः स्युरिति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तेणं असंखेज्जा समए समए अबहीरमाणा अव. हीरमाणा' ते खलु नारका असंख्येयाः समये समये प्रतिममयम् अपहियमाणा अपहियमाणाः 'असंखेज्जाहिं उस्सपिणी ओसप्पिणी हि अवहीति' असंख्येयामि रुत्सविण्यवसारिणीभिरहिएन्ते 'णो चेवणं अवढियासिया' नैद खल अपहतास्युः यदि पतिममयसंख्यात संख्यया असंख्येयोत्सपिण्यवसायिणी कालेस्तेपामपहरणं हीरमाणा अबहीरमाणा' निकाले जावे तो वे सब वहां से 'केवय कालेणं अक्षझिया लिया कितने साल के बाद कितने काल में पूरे निकाले जा सकते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा! तेणं असं खेज्जा समए समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा असं खेज्जा हिँ उस्तप्पिणी ओसपिणीहि अवहीरंति' हे गौतम ! प्रथम पृथिवी के नारकियों में से यदि एक एक समय में असंख्यात २ नारकी निकाला जावे तो इस तरह करते २ असंख्यात उत्सर्पिणी और असंख्यात अपलर्पिणी काल भले ही समाप्त हो जाते पर वहां से पूरे नारकी नहीं निकाले जा सकते हैं-अर्थात् प्रति समय वे असंख्यात २ की संख्या में वहां से निकाले जाव और यह निकालने का काम असंख्यात उत्सर्पिणी अवपिणी तक भी चालू रहे तो भी वे वहां से पूरे नहीं निकल सकते हैं। 'जो चेवणं अवाहिया सिया' इस तरह से उनका वहां से निकालना हुआ नहीं है और न भविष्य में भी ऐसा सिया' १ ५ पछी अर्थात हेरा पू३५२। १९१२ ४७ सय मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतभावामीन ४ छ है 'गोयमा ! तेण असंखेज्जा समए समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा अस खेज्जाहि उत्सप्पिणी ओसप्पिणीहिं अवहीरंति' 3 गीतम! यसरी पृथ्वीना नरयिमाथीने से समयमा અસંખ્યાત અસંખ્યાત ઉત્સર્પિણ અને અસંખ્યાત અસંખ્યાત અવસર્પિણું કાળ ભલે પૂરો થઈ જાય તે પણ તે ત્યાંથી પૂરેપૂરા નારકી બહાર કહાડી શકાતા નથી. અર્થાત્ પ્રતિસમયે તેઓને અસંખ્યાત અસંખ્યાતની સંખ્યામાં ત્યાંથી બહાર કહાડવામાં આવે અને આ રીતે બહાર કહાડવાનું કામ અસંખ્યાત ઉત્સર્પિણ અને અસંખ્યાત અવસર્પિણ કાલ પર્યન્ત તે રીતે બહાર કહાડવાનું ચાલુ જ રહે તો પણ તેઓ ત્યાંથી પૂરેપૂરા બહાર કહાડી શકાતા નથી. જો चेव णं अपहियों सिया' भाशते तेमाने त्यांथी १४२ ४७वानु थयु नथा. અને ભવિષ્યમાં પણ તેમ થશે પણ નહીં અને વર્તમાનમાં પણ તે રીતે થતું
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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