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________________ १२२ जीवाभिगमसूत्रे 'गोयमा' हे गौतम! 'सोलस जोयणसदस्साई अदए अंरे पत्ते' पोडशयोजन सहस्राणि अवाया अन्धरं व्यवधानं पज्ञतम् । खरकाण्डस्यान्तिमं विभागकाण्डं रिष्टरत्नकाण्डं तस्यावस्वनचरमान्त रत्नप्रभोपरितनचर मान्तात् पोडशयोजन सहस्रान्तरेण कथितः रिष्टकाण्डाऽधस्वन चरमान्व पङ्कबलोपरितन चरमान्तौ परस्परं संलग्न अत उभयोरपि तुल्यप्रमाणमेवान्तरं भवतीति । 'हेठिल्ले घरिमंते एक्कं जोयणसयसहस्स' रत्नममाया उपरितनात् चरमान्तात् पङ्कत्रहुलस्याधस्तनश्वरमान्तः एकं योजनशतसहस्रम् रत्नममोपरिचरमान्तात् पङ्कवहुलकाण्डस्याधस्तनचरमान्त एक योजना सहस्रमन्तरं भवतीति ज्ञातव्यम् । यतो 'गोयमा ! सोलस जोयणसरस्साई भवाहाए अंतरे पन्नत्ते' हे गौतम! इन दोनों के बीच में सोलह हजार का अन्तर है । खरकाण्ड का अन्तिम काण्ड रिष्ट रत्नकाण्ड है इसके अधस्तन चरमान्त में रत्नप्रभा के उपरितन चरमान्त से सोलह हजार योजन का अन्तर कहा गया है। क्योकि रिष्ट रत्नकाण्ड का अधस्तन चरमान्त और पहल का उपरितन चरमान्त ये दोनों आपस में लगे हुए हैं - मिले हुए है। इसलिये दोनों में बराबर अन्तर है । 'हेडिल्ले चरिमंते एक्कं जोयण सपसहस्सं' रत्नप्रभा के उपरितन चरमान्त से पङ्गचहुल का जो अधस्तन चरमान्त है वह एक लाख योजन के अन्तर का है। अर्थात् रत्नप्रभा के उपरितन चरमान्त से पङ्कवहुलकाण्ड का अवस्तन चरमान्त एक लाख योजन के अन्तर वाला है। क्योंकि रत्नप्रभा पृथिवी का खरकाण्ड सोलह हजार १६००० योजन का है और पङ्कचहुलकाण्ड चौरासी 'गोयमा ! सोलस सहरसाई अबहाए अंतरे पन्नत्ते' हे गौतम! आमन्नेनी વચમાં સેાળ હજાર ચેાજનનું અંતર આવેલું છે. ખરકાંડને છેલ્લે કાંડ ષ્ટિકાંઠ છે. તેના અધસ્તન ચરમાંતમાં રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ઉપરના ચરમાંતથી સેાળ હજાર ચાજનનું અંતર કહેલ છે. કેમકે ષ્ટિકાંડનુ અધસ્તન ચરમાંત અને પંક મહુલનું ઉપરિતન ચરમાંત આ એક પરસ્પરમાં લાગેલા છે. અર્થાત્ મળેલા छे. तेथी मे मेऽभां मराभर अंतर खावेलु छे, 'हेट्ठिल्ले चरिमंते एक जोयण सय सहसं' રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ઉપરના ચરમાંતથી પ ક બહુલકાંડનુ જે અધસ્તન નીચેનુ ચરમાંત છે, એ એક લાખાજનના 'તરનું' છે. અર્થાત્ રત્નપ્રભાના ઉપરના ચરમાંતથી પંક બહુલકાંડનું અધસ્તન ચરમાંત એક લાખ ચેાજનના અંતરવાળુ છે. કેમકે રત્નપ્રભા પૃથ્વીનેા પ્રકાંડ ૧૬૦૦૦૬
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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