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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ सू.१० प्रतिपृथिव्याः उपर्यधस्तनचरमान्तयोरन्तरम् ११५ भंते' इत्यादि, 'इमीसे णं भंते' एतस्याः खल्लु 'रयणप्पभाए' रत्नप्रभायाः 'उरिल्लाओ चरिमंताओं' उपरितनात् चरमान्तात् 'खरल्स इंडस्स हेठिल्ले चरिमंते' खरस्य काण्डस्याधस्तनश्वरमान्तः 'एलणं' एक्स्खलू केवयं अवाहाए अंतरे पन्नत्ते' । कियत् अधया अन्तरं-वधानं प्रज्ञप्तम् ? इति प्रश्नः भग. वानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सोलस जोयणसहस्साई अंत. रे पन्नते' पोडशयोजनसहस्त्राणि अन्तरं प्रज्ञप्तम्-कथितम्, खरकाण्डस्य प्रत्येक मेकैक सहस्रयोजल भमित तभेदरूप रत्नकाण्डादि पोडशमकारकात्मकत्वात् । 'इमी से णं भंते' एतस्याः ख अ भदन्त ! 'स्यणप्रभाए' रत्नप्रभायाः पृथिव्याः 'उवरिल्लाओ चरिमंताओ' उपरितनात् चरमान्तात् 'रयणस्स कंडस्स' खरकाण्डप्रभेदरूपस्य रत्ननामा प्रथमकाण्डस्य यः 'हे ठिल्ले चरिमंते' अधस्तनोऽधः तीन काण्डों का अन्तर प्रकट करते हैं-इसमें गौतम ने प्रभुसे ऐसा पूछा है-मीले भंते ! रयणासाए पुढोए उवरिल्लाओ चरिमंताओ खरस्स कंडस्ल हेठिल्ले प्वरिमंते एल णं वय अबाधाए अंतरे पन्नत्त' हे भदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवी के उपरितन चरमान्त से खरकाण्ड का अधस्तन चरमान्त अवाधाले अर्थात् विभाग पूर्वक प्रत्येक का कितना अन्तर है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! स्लोलसजायण सहस्साई अंतरे पन्नत्ते' हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथिवी के ऊपर के चरमान्त से खरकाण्ड के अधस्तन चरमान्त लक लोलह हजार योजन का अन्तर है क्योंकि अपने विभाग रूप प्रत्येक एक एक हजार योजन के रस्नकाण्ड आदि सोलह काण्ड वाला है 'इमीलेण अंते ! रयणपभाए पुढवीए उवरिल्लाओ चरिमंताओ' हे पदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवी के उपरितन चरमात से रयणस कंडस' रत्नकाण्ड के 'हेटिल्ले 'इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए उबरिल्लाओ चरिमताजी, खरस्स हेठिल्ले चरिभंते एएणं केवइयं अवाधाए अतरे पन्नत्त' 8 सावन मा रत्नमा પૃથ્વીના ઉપરિતન ચરમાન્તથી બરકાંડના અધસ્તન–નીચેના ચુરમાન્ત સુધીમાં વિભાગપૂર્વક દરેકનું કેટલું અંતર કહેલું છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रसु गीतसस्वामीन. ४३ छ, 'गोयमा ! सोलस जयणसह. स्माइं अतरें पन्नत्ते' के गौतम ! २त्नमा पृथ्वीना GRना यभान्तथी બરકાંઠના અસ્તિનચરમાન્ત પર્યન્ત સેળ હજાર જનનું અંતર કહેલું છે. કેમકે તે પોતાના વિભાગ રૂપે દરેક એક એક હજાર યોજનના રત્નકાંડ વિગેરે से ४istणे छे. 'इमीखे णं भंते ! रयण पभार पुढबीए उवरिल्लामा चरिमताओ सावन मा २त्नला पृथ्वीना ०५२ना . य२मान्तया रयणस्स' कडस्स'
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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