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________________ , जीवाभिगमसूत्र भुजपरिसर्प स्थलचरीणामपि स्थितिर्जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् उत्कर्पतः पूर्वकोटिप्रमाणा भवतीति भावः । 'एवं खहयरतिरिक्खजोणित्यीणं' एवं खेचरतियंग्योनिकस्त्रीणाम् 'जहन्नेणं अंतो मुहत्त' जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् 'उक्कोसेणं पलिभोवमस्स असंखेज्जइभाग' उत्कर्षण पल्योपमस्य असंख्येयभागः, पल्योपमस्यासंख्येयभागप्रमाणा स्थितिर्भवति खेचरीणामिति ॥ 'मणु स्सित्थीण भंते' मनुष्यस्त्रीणां भदन्त ! 'केवयं कालं ठिई पन्नत्ता' कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्तेति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'खेत्तं पडुच्च' क्षेत्रं प्रतीत्य क्षेत्राश्रयणेनेत्यर्थ. 'जहन्नेणं अंतो मुहत्तं' जघन्येनान्तमुहर्ता स्थितिर्भवति 'उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई' उत्कर्षेण त्रीणि पन्योपमानि मनुष्यस्त्रीणी देवकुर्वादिषु भरतादिष्वपि एकान्तमुपमादिकाले युगलिकापेक्षया पल्योपमप्रमाणा स्थितिर्भवतीति । 'धम्मचरणं वैसं. ही मुजपरिसर्प स्थलचरत्रियों की भी भवस्थिति जाननी चाहिये “एवं खहयरतिरिक्ख. जोणित्थीण-जहन्नेणं अंतोमुहुत्त उकोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो” खेचरतिर्यग्योनिकस्त्रियों की भवस्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहर्त की है-और उत्कृष्ट से पल्योपमके असख्यातवें भाग प्रमाण है । "मणुस्सित्थीणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता" हे भदन्त । मनुष्यस्त्रियों की भवस्थिति कितने काल की कही गई है ? “गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेण तिन्नि पलिओवभाइं” क्षेत्रकी अपेक्षा लेकर जघन्य स्थिति तो इनकी एक अन्तर्मुहूर्त की कही गई है और उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपमकी कही गई है "क्षेत्र को अपेक्षा लेकर" ऐसा जो कहा गया है उसका तात्पर्य ऐसा है कि जब भरतादि क्षेत्रों में उत्कृष्ट भोग भूमि का समय होता है तब युगलियों की अपेक्षा से और देवकुरु आदि कों की स्त्रियोंकी अपेक्षासे क्योंकि यहां पर उत्कृष्ट भोगभूमि होने से एकान्ततः सुपमसुषमा काल का सद्भाव सप्प" ७२: परिसप स्थलयर स्त्रियानी सपस्थिति २ प्रमाणे ही छे से प्रभाव सुर परिस५ स्थाय२ जियानी लपस्थिति ५ सभ देवी, "एवं सहयरतिरिक्ख जोणिस्थीणं-जहाणेणं-अंतोमुहुप्तं उक्कोलेणं पलिमोवमस्स असंखेज्जर भागो" २२ तिर्थચેનિક સ્ત્રિની ભવસ્થિતિ જઘન્યથી એક અંતર્મહત્વની છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી ५त्यापमना गसयतमा माग प्रमाएर छ "मणुस्सित्थीणं भंते ! केवइयं कोल ठिई पण्णता" 3 सावन मनुष्य स्त्रियांनी लपस्थिति ट न उवामा भावी छ ? 'गोयमा ! खेत्तं पडच्च जहण्णेण मंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई" क्षेत्रनी अपेक्षायी भनी धन्य स्थिति तो मत इतनी उवामा આવેલ છે. અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ટાણુ પલ્યોપમની કહી છે ક્ષેત્રની અપેક્ષાથી એ પ્રમાણે જે કહેવામાં આવ્યું છે, તેનું તાત્પર્ય એવું છે કે-જ્યારે ભરતાદિ ક્ષેત્રોમાં ઉત્કૃષ્ટ ભેગભૂમિને સમય હોય છે, ત્યારે યુગલિયેની અપેક્ષાથી, અને દેવકર વિગેરેની વિશ્વની અપેક્ષાથી.–કેમકે–અહિંયાં ઉત્કૃષ્ટ ભેગભૂમિ હોવાથી એકાન્તત સુષમ સુષ માકાળનું અસ્તિત્વ -L
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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