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________________ जीव और कर्म-दिवार। कार्य कुन्दकुन्दस्वामीने श्रीपाइलीलें कहा है किएंडन भट्टा महादसण भट्टाण पदिय लिया, सिझति चरिप महा सणभट्टाण सिझति । भर्गव, सम्रदर्शनसे भ्रष्ट हुए मिथ्यात्थियोंका उद्धार नहीं है। चारित्रमोहनी हर्मल भेद। जो धर्म आत्माले चारित्रशुपको बात करे उसको मोहनी. को कहते हैं। चारित्रमोहनीम दो प्रकार है--फपायवारिज मोहनी और अफपार्यकारित्र मोहनी। पाय चारित्रमोहनीके १६ भेद हैं और अपापचारित्रमोहनी पर्वले भेद है। इस प्रकार चारित्रमोहनो धर्म २५ भेद है। अनंतानुवंधी उपाय-को फर्म अनंत मिथ्यात्वको उत्पा फरे या अनंतश्वको अनुसंध कर उसको अनंतानुबंधी कहते हैं और कयाण शब्दका मर्ष जो यात्माके भाव आत्माफे झानादि गुणोंको शहरे, गट पर अपना धर्मक्षेत्रको कश कर यो के उत्तमक्षमादि धर्मको म ने उसको फघाय कहते हैं। जो अनंत पिध्यात्यको उत्पनकर मात्माके उत्तमक्षमादि धमाका हश घरेशात्मा उत्तमक्षमादि धर्म प्रकट नहीं होने देवे अथवा त संसारको बढ़ानेवाला बंध करे। आत्माके परिणा. सोने तो मोसा रंग चढ़ा देवे जिससे भात्मा सपने स्वरूपकोही शत नहीं हो। गात्म विपरीत सावोंको धारण कर देवे,. ऐली कपायको अनंतानुबंधीरूपार कहते हैं। यह कषायमी सम्य. ग्दर्शनका घात कर देती है।
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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