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________________ जी और फर्म-विचार । [१४५ _ यतमान समयमें कितने हा विश्वास नाके लाभा मेवारी. पदको पलंफित करनेवाले इसी प्रकार धर्मको आहमें छपे सुपे । धर्मको फलकिन करने के कार्य करते है, धमकी होनासारसा विधवाविवाह बादि द्वारा करते है और समझाने पर मो मानते नहीं, उनकी पोलको भ्रम और समाजकी रक्षाके लिये प्रकट परदेना चाहिये। समाजमे ऐसे मनुप्याँको (धर्मठगोंकी) रोटी नहीं देना चाहिये समाजमसे बहिष्कारको घोषणा फरदेनी चाहिये कारण ऐसे लोग देव-गुरु-शास्त्र और धर्मका अवर्णवाद करनेवाले घोर मिथ्यात्वी नार समाजका पूरा अहित करनेशले है। इस प्रकार पच्चीस दाप सम्यक्त्व प्रकृतिके उदयसे होते है परन्तु सम्ययत्व भाव तागापाग पूर्णरूपसे घनेरहते हैं। समस्त फर्मामें मोहनाकमहा घलयान है समस्न फर्मों का राजा है। समस्त कर्मों की शक्ति मोहनोकर्मके उदय होनेपर ही होती है । जो मोहनीफर्म नष्ट होजाय तो अवशेष समस्त फर्म स्वय. मेव नए हो जाते हैं। समस्त कमौका जोर मोहनीकर्मके उद्यो ही है। मोहनीकम से दर्शनमोहनी कम पहुनही दुष्ट है मारो संसार दर्शनमोहनीकमके उदयमें ही अननसंसार भ्रमण करता है जन्म मरणका दुःख दर्शनमोहनीकमके उदयमें ही है । इसलिये समस्त प्रकारके प्रयत्नोसे दर्शनमाहनीकर्म (मिथ्यात्व)को त्याग करना चाहिए। मिथ्यात्वके समान कोई भी शत्रु नहीं है। मध्यात्वके समान अन्यकोई दुःखका प्रदान करनेवाला नहीं है। और संसारमें परिभ्रमणका कारण नहीं है। इसी बातका महत्व
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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