SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * इष्ट छतोसी * पाकसूत्रांग, ये ग्यारह अङ्ग हैं ॥२८॥ ___ चौदह पूर्व । उत्पादपूर्व अग्रायणी, तोजो वीरजवाद । अस्ति नास्ति परवाद पुनि, पंचम ज्ञानप्रवाद ॥ छट्टो कर्मवाद है. सतप्रवाद पहिवान । अष्टम आत्मप्रवाद पुनि, नवमों प्रत्याख्यान ॥३०॥ विद्यानुवाद पूरव दशम, पूर्वकल्याण महत। प्राणवाद किरिया बहुल, लोकबिंदु है अन्त ॥३१॥ ___ अर्थ-१ उत्पादपूर्व, २ अप्रायणि पूर्व, ३ वीर्ष्यानुवादपूर्व, ४ अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व, ज्ञानप्रवादपूर्व, ६ कर्मप्रवादपूर्व, ७ सत्प्रवा. दपूर्व, ८ आत्मप्रवादपूर्व, ६ प्रत्याख्यानपूर्व, १० विद्यानुवादपूर्व, ११ कल्याणवादपूर्व,१२ प्राणानुवादपूर्व,१३ क्रियाविशालपूर्व, १४ लोकबिन्दुपूर्व ये १४ पूर्व है ।। सर्वसाधुके २८ मूलगुण । पंचमहाव्रत-हिंसा अन्त तस्करो, अब्रह्म परिग्रह पाय । मन. वचतनने त्यागवो, पंचमहावृत थाय ॥३२॥ अर्थ - ? अहिंसा महाव्रत, सत्य महाव्रत, ३ अचौर्य महाव्रत, ४ ब्रह्मचर्य महाव्रत, ५ परिग्रहत्याग महावत, ये पांच महाव्रत है। पांच समिति -- ईटा, भाषा, एषणा,पुनि क्षेपन, आदान । प्रतिष्ठापनाजुत क्रिया, पांचों समिति विधान ॥ अर्थ- ईर्ष्या समिति, २ भाषासमिति, ३ एषणासमिति ४ आदाननिक्षपणसमिति,५ प्रतिष्ठापनासमिति, ये पांच समिति हैं । पांच इन्द्रियोंका दमन । सपरस रसना नासिका, नयन श्रोत्रका रोध ।
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy