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________________ * इष्ट छतोसी * - आचार्यके ३६ गुण -- द्वादश नप दश धर्मजुत पालैं पञ्चाचार । षट् आवशिक त्रयगुप्ति गुन आचारज पदसार ॥ अर्थ-तप १२, धर्म १०, आचार ५, आवश्यक ६, गुप्ति ३ ये आचार्य महाराजके ३६ मूलगुण होते हैं। अब इनको भिन्न २ कहते है ॥१६॥ द्वादश तप । अनशन ऊनोदर करें, जनसंख्या रस छोर । विविक्तशयन आसन ध काय कलेश सुठोर । प्रायश्चित धर विनयजुत वैयावत स्वाध्याय । पुनि उत्सर्ग विचारकै धर ध्यान मन लाय ॥२१॥ अर्थ-१ अनशन, २ ऊनोदर, ३ व्रतपरिसंख्यान, ४ रसपरि. त्याग, ५ विविक्तशय्याशन, ६ कायक्लेश, ७ प्रायश्चित लेना, ८ पांच प्रकारका विनय करना, ६ वैयाव्रत करना, १० स्वाध्याय करना ११ व्युत्सर्ग ( शरीरसे ममत्व छोड़ना ). और १२ ध्यान करना ये बारह प्रकारके तप है ॥२१॥ दश धर्म-छिमा मारदव आगजब, सत्यवचन चित पाग। संजम तप त्यागी सरव, आकिंचन तियत्याग ॥ अर्थ-१ उत्तमक्षमा, २ मादेव, ३ आर्जव, ४ सत्य, ५ शौच, ६ संयम, ७ तप, ८ त्याग, ६ आकिंचन, १० ब्रह्मचर्य ये दश प्रकारके धर्म है ॥२२॥ पट आवश्यक-समता धर बंदन करे, नाना थुती बनाय । प्रतिक्रमण स्वाध्यायजुत, कायोत्सर्ग लगाय ।। अर्थ-१ समता ( समस्त जीवोंसे समता भाव रखना )२, बंदना, ३ स्तुति (पञ्चपरमेष्ठीको स्तुति ) करना, प्रतिक्रमण (लगे
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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