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________________ ४०२ जिनवाणी संग्रह। जयमाला (इन्द झूलना) वीर जिन धोरधर सिंहपग चिन्हधर तेजतप धरन जयसूर भारी। धर्मकी धुराधर अक्षर बिनु गिराधर परम पद धरन जय मदन हारी। दयाधर सीमधर पंचवर नाम धर अमल छवि धरण जय शरमकारी। पञ्चपरवर्तकी भर्मना ध्यंसिके अचलपद लहत जयजस विथारी ॥१॥ (छन्द प्रोटक) जय आनन्दके घनवोर नमों, जय नाशक हौ भवभीर नमों। जयनाथ महासुख दायक हो, जमराजबिहंडन लायक हो ॥२॥ जय चरमशरीर गंभीर नमो, जय चर्मतिर्थंकर धीर नमो। जय लोक अलोक प्रकाशक हो, जन्मान्तरके दुखनाशक हो ॥३॥ जय कर्म कुलाचल छेद नमो, जय मोह बिना निरखेद नमो। जय पूज्यप्रताप सदा सुथिरा, प्रगटी चहुं ओर प्रशस्त गिरा ॥४॥ तन सात सुहास विथाल नमो कनकाभ महा दशतालनमो। शुभमूरति मो मन माहिं बसी, सिगरी तबते भव भ्रांति नसो ॥५॥ जय क्रोध दवानल मेघ नमो, जय त्याग करो जगनेह नमो। जय अम्बर छोड़ि दिगम्बर भे, गति अम्बरकी धरि अमरभे ॥६॥ जय धारक पञ्चकल्याण नमो, जय रोजनमें गुणवान नमो। जय पाद गहें गणराज रहैं, सचिनायकसे मुहताज रहैं ॥ ७ ॥ जय भौदधि तारण सेत नमो, जय जन्म उधारन हेत नमो। जय मूरति नाथ भली दरसी, करुणामय शांति छया करसी ॥८॥ जय सार्थिक नाम सुधीर नमो, जय धर्मधुराधर वीर नमो। जय ध्यान महान तुरी चढ़के, शिवखेत लिया अति ही बढ़के
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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