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________________ ४०० जिनवाणी संग्रह। अष्टक छंद द्रतविलय। मदेव जिनेश्वर वीरके । चरण पूजत नाशक पीरके ॐ ह्रीं श्रोबीर नाथ जिनेन्द्राय जन्मरोगविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा जल ॥१॥ परम चन्दन शीतल वामना। करि मुकेशरि मिश्रित पावना ॥ वरमदेव जिनेश्वर वोरके। चरण पूजत नाशक पीरके ॥ ॐ ह्री श्रीवोरनाथ जिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं ॥२॥ धवल अक्षत वाव चढ़ावही। करि सुपुंज महामन भावहो। चरम० । चरण पूजत० ॥ ॐ ह्री श्रीबीरनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं ॥ ३ ॥ पुहप माल वनाय हिरायके । जुगतिसो प्रभु पास लियायके । चरमदेव०। चरण पूजत० ॥ ॐ ह्रो श्रीवीरनाथ जिनेन्दाय कामबाण बिनाशनाय पुष्पं ॥४॥ नबल घेबरबाबर लायके। घृतसुलोलित पूर्व बनायके । चरमदेव० । चरण पूजत०॥ ॐ ह्रीं श्रीवीरनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोगनाशाय नैवेद्य ॥ ५॥ करि अमोलक रत्नमई दिया। जगत ज्योति उद्योतमई किया। चरमदेव० । चरण पूजत०॥ ॐ ह्रीं श्रोवीरनाथ जिनेन्द्राय मोहांधकार बिनाशनाय दीप॥६॥ उठत धूम्र घटावलि जासुते । इम सुधूप सुगन्धित तासुते ॥ चरमदेव० ॥ वरण पूजतः ॥ — ॐ हों श्रीवीरनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं ॥॥ फणसदाडिम आम्र पके भये। कनक भाजनमें भरके लये ॥
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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