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________________ दीपमालिका विधान। ३८८ ध्यान धई। शिव मदिरको धारै सोई। गिरवर बंदे कर धर दोई ॥३६॥ जो भव बन्दे एक जु वार । नरक निगोद पशू गति टार॥ सुर शिवपदकू पावै सोय । गिरवर बंद कर धर दोय ॥३७॥ता की महिमा अगम अपार । गणधर कयहून पावे पार ॥ तुम अद्भुत मैं मतिकर हीन। कहो भक्त वसु केवल लीन ॥३८॥ घसा-श्री सिद्ध क्षेत्र अति सुख देत । सेवतु नासो विघ्न हरा ॥ अरु कर्म बिनाशे सुक्ख पयासै केवल भासै सुक्ख करा ॥ ३८ ॥ ओं ह्रीं सम्मेदशिविर सिद्धपद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो महाघ । दोहाशिखरसम्मेद पूजो सदा । ममवच तन कर नारि ॥ सुर शिवके जे फल लहै, कहते दास जवारि ॥४०॥ इत्यादि आशीर्वादः । (८३) दीपमालिका विधान । श्री महावीर पूजा ( कवि मनरङ्गजी) गोता छंद। शुभनगर कुण्डलपुर सिद्धारथरायके त्रिशलातिया ।तजि पुष्प उत्तर तासु कुक्ष्या वीर जिन जन्मन लिया ॥कर सात उन्नत कनक सा तनु बंशवर इक्ष्वाक है ॥ वें अधिक सत्तरि वरस आउष सिंह चिन्ह भला कहै ॥१॥ __ छदमालिनी-सो जिनवीर दयानिधिके जुग पाद पुनीत पुनीत करेंगे। जावत मोक्ष न होय हमें शुभ तावत थापन रोज करेंगे। आय बिराजहु नाथ इहां हम पूजिके पुण्य भण्डार भरेंगे। ॐ ह्रीं श्रीवीरनाथ जिनेन्द्राय पुष्पांजलि क्षिपेत्॥ पुष्पोंको धालीमें डाले। कनक भसु वारि भरायके। मिल भाषत्रिशुद्ध लगायके । सर
SR No.010386
Book TitleJinvani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kasturchand Chavda
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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